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पीठ एवं रीढ़ के आसन : By Yogi Ashwini Ji

पीठ एवं रीढ़ के आसन:

Yogi Ashwinin Ji

रीढ़ को प्रायः दूसरा  मस्तिष्क भी  कहा  गया  है , यह  शरीर की  स्वाभाविक  तथा  स्वतः  होने  वाली क्रियाओं   को नियंत्रित करती है| इसे मेरुदण्ड  भी  कहा जाता है क्योंकि  शरीर  के सभी  प्रमुख  अंग  इसी  पर  टिके  हैं  |  ऐसा  कहा  जाता  है  कि “जितनी सीधी आपकी कमर  हैआप उतने ही युवा है”|

 

दुर्गभाग्यवश आधुनिक जीवन शैली कि प्रवृत्तियो में दीर्घ-कार्य समय, अनुचित अंग-विन्यास, तनाव एवं आधुनिक स्वास्थ्य प्रणालियां  समाविष्ट  है, जो की पीठ पर अत्यधिक दबाव डालती है जिसका परिणाम प्रायः आजीवन रीढ़ सम्बन्धी  रोगों  के  रूप  में  शरीर  में  प्रत्यक्ष होता है .

लेखों  कि  इस  शृंखला में हम सनातन  क्रिया  में  निर्देशित  रीढ़  और  कमर को  सशक्त  करनेवाले  सात आसनों  की चर्चा करेंगे| ये  आसान पीठ और रीढ़ की परेशानियों से ग्रसित लोगों  के लिए अत्यन्त लाभकारी है और  उनके लिए भी जो इन परेशानियों से दूर रहना चाहते है तथा योग साधना एवं सनातन क्रिया के  अलौकिक  अनुभवों  को  प्राप्त  करना  चाहते  हैं .

 

सर्प  आसन :  पेट के बल सीधा लेटें  और  अपनी एड़ियों को जोड़ लें . श्रोणि  के  पास  दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में मिलाकार भुजाओं को  खींच  के  रखें  तथा  माथे को पृथ्वी पर टिका लें | गहरा  श्वास भरें  तथा सिर और गर्दन को अनुकूल और समान्तर रखते हुए धर  को उठाए.इस  अवस्था में सात गिनने तक रहें  और अपना सारा ध्यान पीठ पर केंद्रित  करें . सांस  छोड़ते  हुए  फिर से पेट के बल लेट जाए| इस क्रिया कोसात  बार दोहराए.

अदवासन : पेट के बल लेट कर  अपनी दोनों भुजाओं को आगे की ओर  ले  जाएँ , माथा पृथ्वी पर और दोनों एड़िया जुड़ी रहेंगी, श्वास अंदर लेतेहुए अपने दोनों हाथों  को ऊपर और पैरो को नीचे की ओर खींचे  . इस  अवस्था में सात गिनने तक रहे  और अपना सारा ध्यान पीठ पर केंद्रित करें | फिर श्वास छोड़ते हुए वापस विश्राम अवस्था में आ जाए . इस क्रिया को सात बार दोहराए

सभी  आसनों के  अभ्यास  के  समय  अपनी आँखें बंद रखें  तथा  अपनी गति का तालमेल अपनी श्वास के अनुकूल रखें| किसी भी प्रकार  क़ीअसहजता  या कष्ट  महसूस होने  पर  क्रिया  रोक  दें .

पूर्ण  लाभ के लिए आसन व  अन्य  योग क्रियाएँ  गुरु के मार्गदर्शन में  ही  करनी  चाहिए .

गुरु  सानिध्य  में  विधिअनुसार  इन  आसनों  का अभ्यास  करने  से  सुषुम्ना नाड़ी के सभी अवरोध  खुल  जाते  है ,जिससे प्राणो का मुक्तप्रवाह होता है – युवावस्था , सुंदरता , चमक एव  सशक्त  रीढ़ स्वतः प्राप्त हो जाती है .

 

योगी अश्विनी जी  ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक  है|   www.dhyanfoundation.com. पर उनसे  संपर्क किया  जा  सकता  है

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