स्वच्छता मनुष्य का गौरव : स्वच्छता स्वास्थ्य का आधार है
By Raj Kishore Kalra from Fazilka:
मानव के गुणों में स्वच्छता का अपना प्रमुख स्थान है। इस गुण को बढाना ही मनुष्य का गौरव हैं। हमें इसके विकास में रूचि लेनी चाहिए। स्वच्छता रखने में जितना कष्ट होता है, आत्मतृष्ठि उससे अधिक होती है।
स्वच्छता स्वास्थ्य का आधार है। आरोग्य के लिए गंदगी को समाप्त करना होगा। गंदगी कीटाणुओं का जन्म स्थान है। इसमें विभिन्न प्रकार के कीटाणू, मखी, मच्छर, खटमल और पिस्सू आदि पनपते हैं। इन कीटाणूओं को मारते रहने से लाभ विशेष नहीं होता, क्योंकि गंदगी के रहने से यह फिर पैदा हो जाएंगे। गंदगी को हटाना इनको समाप्त करने का उपाय है। यह कीड़े रोग फैलाकर हमें कष्ट देते हैं तथा असुविधा उत्पन्न करते हैं। गंदगी जितना पास रहेगी उतनी ही हानीकारक होगी। मनुष्य के गंदा रहने का मुख्य कारण उसका औछा व्यक्तित्व है। स्वच्छता का महत्व न समझने पर ही मनुष्य इसकी उपेक्षा करेगा। मनुष्य इसे क्षम-साध्य समझता है। वास्तव में इसमें क्षम से अधिक सर्तकता की आवश्यकता है। छोटी-छोटी बातें जो गंदगी का कारण बनती हैं, हमें सृझती नहीं। चोरों से असावधानी जिस प्रकार हानि करवाती है। वैसे ही गंदगी से अवासवधानी भी रोग का कारण बन जाती है।
गांधी जी ने साबरमती आश्रम में शौचालय की सफाई का नियम लोगों की अभिरूचि को सुधारने और मानवता की परीक्षा का साधन बनाया था। वह कहते थे- ‘शौचालय को साफ रखने वाला ही दफ्तर को साफ रखेगा। गंदगी से केवल भौतिक हानि ही नहीं होगी, बल्कि स्वभाव बिगडऩे की हानि भी होती है, वह अपना कोई भी कार्य ठीक नहीं कर सकता। एक काम अधूरा छोडक़र दूसरे पर लग जाना उसकी आदत बन जाती है। ऐसे व्यक्ति को असफलता ही प्राप्त होती है।’
वस्तुओं का यथा स्थान रखना भी कार्यो को पूरा करना है। इससे काम को अधूरा छोड़ देने की आदत समाप्त हो जाती है। घर का प्रमुख व्यक्ति यदि इस प्रकार का आचरण करे तो सब अन्य सदस्य अनुकरण करेंगे और आदत बन जाएगी। कार्य और विचार से संस्कार बनते हैं। यही स्वभाव है। संकल्प, दृढता, निष्ठा तथा ततपरता से सात्विकता आती है। जीवन सफल होता है तथा आत्म गौरर्व, आत्म संतोष तथा आत्म विकास होता है।
सुकरात ने आत्मिक उन्नति के इच्छुक व्यक्ति को अपनी बाहरी व्यवस्था जैसे-कपड़े साफ रखना, बटन लगाना आदि को ठीक रखने का उपदेश दिया था। यह उपदेश हरेक के लिए आवश्यक है। यह आध्यामिकता की पहली सीढी है, जिस मार्ग से होकर आदमी आगे बढ सकता है, अपने व्यक्तित्व को उंचा के लिए किए जाने योग्य गुणों में स्वच्छता का समयवेश प्रथम है। इससे सरूचि जागरूक होगी, यह कार्य भोजन आदि स्वंय करने की तरह एक कार्य है तभी यह स्वभाव का अंग बनेगा। स्वच्छता हर पग पर आवश्यक है। अस्वच्छता जीवन को गुणहीन बना देती है, गंदे आदमी जीते हैं। परंतु वह पृथ्वि पर भार है। वह अपने और समाज के लिए लाभदायक नहीं होते।
गरीबी अस्वच्छता का कारण नहीं है, यह मनोवृति है। जिसके मन और आचरण में अस्वच्छता होती है, वह शक्ति और समय का उपव्यय करता है और जीवन भर परेशान रहता है। मानसिक स्वच्छता का प्रमाण उसका आचरण है इसलिए स्वच्छता एक साधना है, मनोवृति का परष्किार है जो इसे प्राप्त करेगा वह सुखी रहेगा अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए इसका पालन करना परम आवश्यक है। आईए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान को प्रत्येक व्यक्ति सफल बनाने के लिए हर संभव सहयोग करे।