सिर्फ एक यात्री हूं- 25 नुक्तों से जीना आ गया -अनिल धामूँ
मैं अब तक जितने साल जी चुका हूँ, उससे कम साल अब मुझे जीना है
सिर्फ एक यात्री हूं- 25 नुक्तों से जीना आ गया -अनिल धामूँ
*🚶में सिर्फ एक यात्री हूं🚶*
मैं अब तक जितने साल जी चुका हूँ, उससे कम साल अब मुझे जीना है।यह समझ आने के बाद मुझमें यह परिवर्तन आया है:-
*_1. किसी प्रियजन की विदाई से अब मैं रोना छोड़ चुका हूँ क्योंकि आज नहीं तो कल मेरी बारी है।_*
*_2. उसी प्रकार,अगर मेरी विदाई अचानक हो जाती है, तो मेरे बाद लोगों का क्या होगा, यह सोचना भी मैंने छोड़ दिया है क्योंकि मेरे जाने के बाद न तो कोई भूखा रहेगा और मेरी संपत्ति की चिंता भी छोड़ दी क्योंकि उसे संभालने वाले त्यार बैठे हैं तो दान करने की ज़रूरत नहीं है।_*
*_3.सामने वाले व्यक्ति के पैसे, पावर और पोजीशन से अब मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता इसी लिए मैं अब डरता नहीं हूँ।_*
*_4.अब खुद के लिए सबसे अधिक समय निकालता हूँ। मान चुका हूं कि दुनिया मेरे कंधों पर नहीं टिकी है। मेरे बिना कुछ भी रुकने वाला नहीं है।_*
*_5.छोटे व्यापारियों, फेरीवालों और रिक्शा वालों के साथ मोल-भाव करना कब का बंद कर दिया है। कभी-कभी जानता हूँ कि मैं ठगा जा रहा हूँ, फिर भी हँसते-मुस्कुराते चला जाता हूँ।_*
*_6.कबाड़ उठाने वालों को टूटा फूटा सामान वैसे ही दे देता हूँ।जब उनके चेहरे पर लाखों मिलने जैसी मुस्कान देखता हूँ तो खुश हो जाता हूँ।_*
*_7.सड़क पर बैठ कर सामान बेचने वालों से कभी-कभी बेकार की चीज़ भी खरीद लेता हूँ।_*
*_8.बुजुर्गों और बच्चों की एक ही बात कितनी बार सुन लेता हूँ। कहने की आदत छोड़ दी है कि उन्होंने यह बात कई बार कही है।_*
*_9.गलत व्यक्ति के साथ बहस करने की बजाय मानसिक शांति बनाए रखना पसंद करता हूँ।_*
*_10.लोगों के अच्छे काम या विचारों की खुले दिल से प्रशंसा करता हूँ। ऐसा करने से मिलने वाले आनंद का मजा लेता हूँ।_*
*_11.ब्रांडेड कपड़ों, मोबाइल या अन्य किसी ब्रांडेड चीज़ से /व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना कब का छोड़ दिया है। व्यक्तित्व विचारों से निखरता है, ब्रांडेड चीज़ों से नहीं, यह समझ गया हूँ।_*
*_12. ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ जो अपनी आदतों और जड़ मान्यताओं को मुझ पर थोपने की कोशिश करते हैं। अब उन्हें सुधारने की कोशिश नहीं करता क्योंकि कई लोगों ने यह पहले ही कर के देख लिया है।_*
*_13. अब कोई मुझे जीवन की दौड़ में पीछे छोड़ने के लिए चालें चलता है, तो मैं शांत रहकर उसे रास्ता दे देता हूँ। आखिरकार, ना तो मैं जीवन की प्रतिस्पर्धा में हूँ, ना ही मेरा कोई प्रतिद्वंद्वी है।_*
*_14.अब मैं वही करता हूँ जिससे मुझे आनंद आता है। लोग क्या सोचेंगे या क्या कहेंगे, इसकी चिंता छोड़ दी है। चार लोगों को खुश रखने के लिए अपना मन मारना छोड़ दिया है।_*
*_15.बड़े बड़े होटलों में रहने की बजाय प्रकृति के करीब जाना पसंद करता हूँ। जंक फूड की बजाय घर की दाल रोटी में ज्यादा संतोष पाता हूँ।_*
*_16.अपने ऊपर हजारों रुपये खर्च करने की बजाय किसी जरूरत मंद की मदद करने से मिलने वाले आनंद का मज़ा लेना सीख गया हूँ और हर किसी की मदद पहले भी करता था और अब भी करता हूँ।_*
*_17.गलत के सामने सही साबित करने की बजाय मौन रहना पसंद करने लगा हूँ। बोलने की बजाय चुप रहना पसंद करने लगा हूँ। खुद से प्यार करने लगा हूँ।_*
*_18.मैं बस इस दुनिया का यात्री हूं और मैं अपने साथ सिवाए प्रेम, आदर, मानवता की सेवा और सिर्फ़ नेक कर्म ही ले जा सकूंगा । यह सत्य भी समझ में आ गया है।_*
*_19.मेरा शरीर और नाम मेरे माता-पिता का बक्शा हुआ है। आत्मा परम कृपालु ईश्वर का अंश है। जब मेरा अपना कुछ है भी नहीं है, तो लाभ-हानि की क्या गणना क्यों?_*
*_20.अपनी सभी प्रकार की मुश्किलें और दुख दर्द लोगों को बताना छोड़ दिया है, क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि जो समझता है उसे कहना नहीं पड़ता और जिसे कहना पड़ता है वह समझता ही नहीं।_*
*_21.अब अपने ही आनंद में मस्त रहता हूँ क्योंकि मेरे किसी भी सुख या दुख के लिए केवल मैं ही जिम्मेदार हूँ यह भी मुझे समझ आ गया है।_*
*_22.हर पल को जीना सीख गया हूँ क्योंकि अब समझ आ गया है कि जीवन बहुत ही अमूल्य है और यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। कुछ भी, कभी भी, कहीं भी हो सकता है! ये दिन भी बीत जाएँगे।_*
*_22.आंतरिक आनंद और उस परमानंद के लिए ईश्वर और प्रकृति की गोद में रहना सीख गया हूं क्योंकि समझ आ गया है कि आखिर इन्ही की गोद में समाना है एक दिन।_*
*_25. हर समय ईश्वर के हुक्म और उसकी बनाई प्रकृति के साए में रहने लगा हूँ क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि अनंत का मार्ग यहीं से हो के जाता है।_*
*♥️देर से ही सही, लेकिन समझ आ गया है शायद मुझे जीना आ गया है!♥️*
✒️अनिल धामूँ✒️
अबोहर (ज़िला फाजिल्का)
पंजाब