योग की वास्तविकता : योगी अश्विनी
योग की वास्तविकता : योगी अश्विनी
आज के समय में न तो योग गुरु होने का दवा करने करने वालों की कमी है और न ही बाज़ार में योग के विषय पर उपलब्ध पाठ्यक्रमों की। तरह – तरह की योग किस्में -डॉग योग, हॉट योग, पावर योग, बीच योग आदि मानों अपने भीतर सारा योग ज्ञान समेटे हुए हैं, अस्वाभाविक रूप से श्वास लेने के तरीके, अत्यधिक कठिन आसन, रोना-धोना, चीखना – चिल्लाना, नाचना, अजीबोगरीब आवाज़ें निकालना, सर के बल खड़े होना और दिन में सपने देखना, अर्थात जितना अधिक अजीबोग़रीब नाम और करने का ढंग उतना ही अधिक लोकप्रिय कोर्स। स्वयं को योग गुरु कहलाने वाले प्रशिक्षकों की तो पूछो ही मत, विचित्र लम्बी दाढ़ियाँ, स्त्रैण वस्त्र, अजीब से हेयर स्टाइल, जिनमें से कुछ तो अपना आशीर्वाद पोस्ट के माध्यम से भेजेंगे, तो कुछ गले लगाकर तथा कुछ इस तरह से कि उनकी करतूतें सुर्खियाँ बन जाती हैं। जिन्होनें ऐसे योग -कोर्स किये हैं वही आपको बता सकते हैं कि वे स्वयं हल्का महसूस कर रहे हैं या उनकी जेबें हलकी हुई हैं और जहाँ तक आध्यात्मिक अनुभव का सवाल है वे अभी भी खोज ही रहे हैं।
ऋषि मार्कण्डेय ने महाभारत के जो कि एक महान महाकाव्य व् ज्ञान का भंडार है, वानपर्व अध्याय में लिखा है कि कलियुग का यह चरण इस बात का गवाह होगा जिसमें गुरु ही वेद बेच देंगे तथा अधिकतर उन पर विश्वास भी नहीं करेंगे। योग और तंत्र के पवित्र विज्ञानं को गलत तरीके से पेश किया जायेगा और सबसे बड़ी विडंबना तो यह होगी कि कोई भी इन गलतियों की आलोचना नहीं करेगा। वास्तव में, अभी यही हो रहा है। हर कोई योग की खोज कर रहा है किन्तु उसका वास्तविक ज्ञान किसी को भी नहीं है। इसी कारण अध्यात्म का व्यापार फल फूल रहा है तथा ज्ञान लुप्त हो रहा है। योग से सम्बंधित लेखों की इस श्रृंखला में मैं पाठक को योग सूत्रों पर आधारित सही योग का संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगा ताकि कम से कम किसी योग कोर्स में भाग लेने से पहले उसके पास एक सूचित विकल्प तो होगा।
योग,एक शक्ति का विषय है और उस शक्ति तक पहुँचने के लिए गुरु रुपी माध्यम की आवश्यकता होती है। इसलिए योग में पहला कदम रखने से पूर्व ‘गुरु’ बनाये जाते हैं। भगवान का दर्ज़ा होते हुए भी राम और कृष्ण ने ‘गुरु’ बनाये थे। गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्ज़ा दिया गया है … इसलिए नहीं के वह परब्रह्मा से बढ़कर हैं बल्कि वह आपके लिए भगवान से बढ़कर हैं क्योंकि आपको पराशक्ति से मिलाने का माध्यम तो वही हैं। गुरु न ही तो एक व्यापारी हैं और न ही एक उद्यमी, वह तो पाँच इन्द्रियों से भी परे हैं क्योंकि वह शारीरिक और भौतिक रूप से अपने लिए कोई भी इच्छा नहीं रखते। वह तो ज्ञान,निःस्वार्थ प्रेम और परम आनंद के दाता हैं। वह आपकी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं हैं, उनका उद्देश्य तो आपका आत्मिक उत्थान है। केवल भौतिक और शारीरिक समस्यायों के हल ढूंढने के लिए उनके पास जाना उचित नहीं है, वह समस्याएँ तो आपके अपने ही किसी नकारात्मक कर्मों के परिणाम हैं जो किसी भी सरल सेवा तथा दान पुण्य करने से ही दूर हो जाएँगी। गुरु के पास तभी जाएँ जब आप इस सृष्टि का सत्य जानना चाहते हैं, इस माया चक्र के परे जाना चाहते हैं , केवल वही विचार आपको आपके गुरु से मिला सकता है।
The views expressed are personal of Yogi Ashwani…