अलविदा 2015 स्वागतम 2016: संभावनाओं की सुबह, संघर्षों के दिन
अलविदा 2015 स्वागतम 2016: संभावनाओं की सुबह, संघर्षों के दिन
इक्कसवी सदी के इस नव वर्ष ने देश और धरती को संभावनाओं की सुबह का अनूठा उपहार दिया है। इस नए वर्ष 2014 में संभावनाएं हैं-भविष्य के नए उजाले की, नई मुस्कुराहटों की, नई समृद्धि एवं खुशहाली की, लेकिन इन संभावनाओं को साकार करने में संघर्ष भी कम नहीं है। सुबह यदि संभावनाओं की है तो दिन संघर्ष का है। हां यह सच है कि नव वर्ष की हर नई सुबह संभावनाओं के नए संदेश लाएगी, पर इन्हें साकार वहीं कर पाएंगे, जो नए साल के हर दिन को अपने संघर्षों की चुनौती समझेंगे। यह सच व्यक्ति केक जीवन का है तो परिवार के जीवन का भी । समाज, राष्ट्र और विश्व भी इससे अलग नहीं है।
नव वर्ष के पटल पर उभर रहे दृष्यों की गहरी पड़ताल करे तो एक ही सच सबके लिए है कि प्रकृति एवं प्रवृति में बढ़ रहे अंधाधुध प्रदूषण को रोकना है, क्योंकि इसी ने उज्जवल भविष्य की सभी संभावनाओं को रोक रखा है। प्रकृति में बढ़ते प्रदूषण ने ही भूकंप, बाढ़ जैसी विनाशकारी आपदाओं केक भयावह दृष्य खड़े किए हैं। दिल दहला देने वाली इन महा आपदाओं से उपजी करूण कराह को भला कौन अनसुनी कर सकता है? यही नहीं, बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा तबाही इंसान की प्रवृतियों में आए प्रदूषण ने की है। इंसान की अपनी ही प्रदूषित प्रवृतियां हैं, जो रोज नए बम धमाके करती हैं, सामूहिक हत्या एवं खौफनाम संहार के विद्रूप आयोजन करती हैं। इंसानियत का संघर्ष इन्हीं से है। संवेदनशीलों को अपने अंदर बलिदानी साहस पेदा करना है। प्रकृति एवं प्रवृति के इस विनाशकारी तांडव नर्तन को आज और अभी से रोकना है। अब यह न पूछें कि शुरूआत कहां से करनी है? क्योंकि इसके जवाब में सारी उंगलियां हमारी और उठ रही हैं। व्यक्ति के रूप में हमें ही व्यक्तिगत शुरूआत करनी है। समाज के जिम्मेवार घटक के रूप में हमें ही इसके सामूहिक आयोजन करने हैं। यह जिम्मेवारी राष्ट्रीय भी है और विश्व भर की भी। स्वच्छ प्रकृति एवं स्वच्छ प्रवृति को अपना ध्येयवाक्य माने बिना उज्जवल भविष्य की संभावनाएं साकार नहीं होंगी, लेकिन इसे कर वही पाएंगे जो अपनी हर सुबह को संभावनाओं की सुबह और हर दिन को संघर्ष का दिन बना लेंगे।
शिक्षाविद राज किशोर कालड़ा
अध्यक्ष सोशल वैल्फेयर सोसायटी बस्ती हजूर ङ्क्षसह फाजिल्का।
मो. 94633-01304