25 दिसम्बर को पुण्यतिथि पर विशेष लेख
25 दिसम्बर को पुण्यतिथि पर विशेष लेख
सम्पन्न भूमिपति परिवार में जन्म लेने पर भी स्तंत्रता संग्राम में कूदे थे लाला सुनाम राए
जिला के प्रथम एम.ए. होने पर अंग्रेज सरकारी की आई.सी.एस. की नौकरी भी ठुकरा कर और सुविधाओं को त्याग कर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई
कई डी.ए.वी.स्कूलों के थे संस्थापक मुख्याध्यापक
लाला लाजपत राय के समाचार पत्र ‘वंदेमातरम्ï’ के रहे संपादक तथा महात्मा गांधी के ‘हरिजन’ के अनुवादक
फाजिल्का, 24 दिसम्बर (सुबोध चंद्र नागपाल): ‘तु़मने दिया देश को जीवन, देश तुम्हे क्या देगा, अपनी आंच तेज रखने को, नाम तुम्हारा लेगा’ फाजिल्का के सम्पन्न भूमिपति परिवार में जन्म लेने तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद भी सुख सुविधाओं के जीवन का त्याग कर अंग्रेज सरकार की आई.सी.एस. की नौकरी ठुकरा कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले थे पंजाब के प्रथम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी लाला सुनाम राय एम.ए. जिन पर उक्त पंक्तियां चरितार्थ होती हैं।
सारा जीवन गांधी जी के ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ के सिद्धांत को अपनाने खादी धारी लाला जी का जन्म 23 नवंबर 1896 को फाजिल्का में Þआ था। उन्होंने 1918 में मिशन कालेज लाहौर से अंग्रेजी में एम.ए.पास की तथा जिला फिरोजपुर के प्रथम एम.ए. Þए। उनकी शैक्षणिक योग्यता तथा काबलियत को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन्हें स्वतंत्रा संग्राम का दामन छोड़ आई.सी.एस.(वर्तमान आई.ए.एस.) सेवा से जुडऩे का प्रलोभन दिया, परन्तु लाला जी के मन में तो देश को स्वतंत्र करवाने की ललक हिलोरे मार रही थी जिस के चलते उन्होंने 1919 के असहयोग आंदोलन सक्रियता से भाग लिया तथा प्रथम बार जेल यात्रा की। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
1942 के भारत छोड़ों आंदोलन में में उन्होंने भाग लिया जिस कारण उन्हें निरंतर अढ़ाई वर्ष तक सेंट्रल जेल मुलतान(पाकिस्तान) में बंदी बन कर रहना पड़ा। जेल में कठिन यातनाओं व निम्न स्तर के भोजन के कारण उन्हें दमे का रोग भी लग गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही लाला जी अपनी प्रखर बुद्धि के कारण पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, जलियावाला बाग कांडके नायक डा. सतपाल के निकट सहयोगी बने। वह सरदार भगत ङ्क्षसह के चाचा अजीत ङ्क्षसह तथा उनके परिवार के भी निकट थे।
लाला जी की पत्रकारिता के क्षेत्र में राष्टï्रीय स्तर पर काफी धाक थी। वह लाला लाजपत राय के प्रतिष्ठिïत दैनिक समाचार ‘वंदे मातरम’ के काफी समय तक संपादक रहे। वह महात्मा गांधी के विख्यात समाचार पत्र ‘हरिजन’ के अनुवादक भी रहे। इसके अतिरिक्त आर्य गजट व अन्य राष्ट्रीय समाचार पत्रों के लिए भी उन्होंने लेखन कार्य किया।
शिक्षा के क्षेत्र के उनका योगदान अतुलनीय रहा। वह साईंदास एंगलो संस्कृत हाई स्कूल जालंधर, महात्मा हंस राज हाई स्कूल बठिंडा, डी.ए.वी. हाई स्कूल श्री गंगानगर, डी. ए.वी. हाई स्कूल सिरसा, डी.ए.वी. हाई स्कूल रामा मंडी, जैतो व राम पुरा फूल के संस्थापक मुख्याध्यापक रहे तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों के साथ भी जुड़े रहे। उनकी विशेषता यह थी कि वह इन स्कूलों में न केवल समॢपत भाव से कार्य ही किया करते थे अपितु अपने वेतन का मुख्य अंश भी इन्हीं स्कूलों के विकास के लिए दान दे दिया करते थे।
स्वतंत्रता संग्राम में लाला जी के नेतृत्व में फाजिल्का में प्रथम बार विदेशी वस्त्रों की एक बड़ी होली जलाई गई। हरिजनों के कल्याण कार्यों में अग्रणी होने के कारण फाजिल्का के उच्च वर्ग के हिन्दु समुदाए ने काफी समय तक उनका बहिष्कार किए रखा था।
समाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के भी लाला जी बड़े पक्षधर थे। लाला जी ने दोआबा के गांधी पंडित मूल राज शर्मा के साथ मिल कर जालंधर में विधवाओं के पुर्न उत्थान हेतु विधवा सहायक सभा तथा विधवा आश्रम की स्थापना की थी। वह नशों तथा अन्य सामाजिक बुराईयों के समापन के लिए भी कार्यरत रहे।
लाला जी पंजाब की कांग्रेस की गतिविधियों में निरंतर हिस्सा लेते थे जिस के चलते उन्हें तत्कालीन अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य रहने का गौरव भी प्राप्त Þआ। लाला जी ने सदैव सिद्धांतो पर आधारित राजनीति ही की। वह त्याग की प्रतिमूॢत थे।
लाला जी दूर अंदेशी थे तथा परिवार नियोजन के कटर पक्षधर थे। उनके केवल दो ही संतानें Þई। लाला जी ने अपने जीवन काल में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के एवज में कभी किसी प्रकार का लाभ लेने का कोई प्रयास अपने जीवन पर्यन्त नहीं किया। इसी परम्परा का निर्वाह करते Þए उनके इकलौते सुपुत्र तथा नाती-पौतों ने भी उनके स्वतंत्रता सेनानी होने का किसी प्रकार का कोई आॢथक व अन्य लाभ नहीं लिया।
लाला जी इस नशवर संसार को छोड़ कर 25 दिसम्बर 1959 को ब्रह्मïलीन हो गए। उनकी स्मृति में स्थानीय गौशाला रोड़ पर महिला सिलाई कढ़ाई सैंटर चल रहा है जिस का संचालन स्थानीय सेवा भारती द्वारा किया जा रहा है। इस के अतिरिक्त उनकी स्मृति में वर्ष 1960 में सिविल अस्पताल के सामने एक परिवार नियोजन केंद्र खोला गया था। कालांतर में इस केंद्र को लाला सुनाम राय एम.ए. मैमोरियल वैल्फेयर सेंटर के रूप में बदल कर सोशल वैल्फेयर सोसायटी फाजिल्का द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस केंद्र में अब जरूरतमंदों के कल्याण हेतु व अन्य अनेकों गतिविधियां चलाई जा रही है।