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सूक्ष्म नाड़ियों का शुद्धिकरण

सूक्ष्म नाड़ियों का शुद्धिकरण
योगी अश्विनी
Nadi Shodhanam 2
योग  में कुछ ऐसी क्रियाएं निहित हैं जो हमारे श्वास के प्रवाह को नियंत्रित कर सकती हैं। इनके नियमित अभ्यास से आप अपने शरीर को सदैव ऊर्जा से परिपूर्ण तथा रोगमुक्त बनाये रख सकते हैं। एक ऐसी ही सरल क्रिया है ‘सनातन क्रिया’ जिसके तहत इस लेख में हम अपने मन, शरीर और आत्मा की शुद्धिकरण के लिए एक अत्यन्त प्रभावशाली प्राणायाम ‘नाड़ी शोधनम’ की विधि से परिचित होंगे।
‘नाड़ी’ हमारे शरीर के प्राणमय कोष में स्थित वह सूक्ष्म वाहिकाएँ हैं जिनके माध्यम से सारे शरीर में प्राणों का संचार निरंतर होता रहता है तथा ‘शोधन’ का अर्थ है  शुद्धिकरण । नाड़ियों में किसी भी प्रकार का संकुलन प्राणों के निर्विघ्न संचार में रुकावट उत्पन्न करता है और यही रुका हुआ प्राण शरीर में अनेक रोगों को उत्पन्न करता है।
नाड़ी शोधनम प्राणायाम में सुषुम्ना नाड़ी के बाईं ओर स्थित इड़ा नाड़ी ( शीतल नाड़ी ) तथा दाईं ओर स्थित पिङ्गला नाड़ी ( ऊष्ण नाड़ी ) मथनी का कार्य करती हैं। इस मंथन के घर्षण से मेरुदंड के मूल में ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह ऊष्मा सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊपर की ओर उठती है और सारे शरीर में फैलती है। यह ऊर्जा नाड़ियों में किसी भी प्रकार के भारीपन,  रुकावट तथा अविद्या को दूर करती है और शरीर सूक्ष्म ऊर्जा और स्वच्छ प्राण ग्रहण करने के लिए सक्षम बन जाता है।
नाड़ी शोधनम प्राणायाम की विधि
1  वज्रासन में बैठ जाएँ, यदि संभव नहीं तो बिना किसी सहारे के अपनी पीठ बिलकुल सीधी करके बैठ जाएँ।
2  अपनी मध्य उँगली  को भौहों के बीच रखें। तीसरी उँगली से अपने बाएँ नथुने को दबाएँ और अँगूठा दाएँ नथुने पर।
3  बाएँ नथुने से श्वास भरें तथा दाएँ नथुने से छोड़ें और फिर दाएँ से श्वास भरें तथा बाएँ नथुने से छोड़ें। यह एक चक्र है।
4   प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में साँस भरते हुए आपका पेट फूलना चाहिए तथा साँस छोड़ते हुए सिकुड़ना। और  गले से संकुचन की ध्वनि उत्पन्न होगी , उज्जयी प्राणायाम की तरह।
चार की गिनती तक  श्वास अंदर लें  तथा बारह की गिनती तक श्वास को बाहर छोड़ें। यह सारी प्रक्रिया लयबद्ध होनी चाहिये,  साँस को बिना रोके। चौदह चक्र से शुरू करते हुए धीरे – धीरे धीरे वृद्धि करें।
ध्यान आश्रम में ऐसे कई साधक हैं जिन्होंने सनातन क्रिया के नियमित अभ्यास से स्वयं को जीर्ण श्वास रोगों से मुक्त कर लिया है। यहाँ तक की गंभीर दमा से ग्रस्त एक छात्रा ने तो तब महसूस किया कि उसका अस्थमा ठीक हो गया है जब केमिस्ट ने उससे पूछा कि पिछले छह महीने से उन्होंने कोई इनहेलर कैसे नहीं ख़रीदा है !
ध्यान देने योग्य कुछ बातें
किसी भी प्राणायाम का अभ्यास एक खुले, हवादार कमरे में होना चाहिए। धूल भरे वातावरण या तेज़ हवा के नीचे प्राणायाम नहीं किया जाता। इसी तरह कूलर या पंखे की सीधी हवा में भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए ।  यह अति आवश्यक है कि प्राणायाम का अभ्यास योग गुरु की देख रेख में ही होना चाहिए क्योंकि टेलीविज़न से नक़ल करके या किसी पुस्तक से पढ़कर किया जाने वाला अभ्यास शरीर को अपूर्णीय क्षति पहुँचा सकता है।

योगी अश्विनी ध्यान आश्रम के मार्गदर्शक हैं तथा www.dhyanfoundation.com पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।

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