सनातन क्रिया – सुंदर, स्वस्थ, तनावमुक्त जीवन के लिए : उज्जयी प्राणायाम – योगी अश्विनी
सनातन क्रिया – सुंदर, स्वस्थ, तनावमुक्त जीवन के लिए : उज्जयी प्राणायाम
योगी अश्विनी
पिछले सप्ताह हमने एक सरल श्वास प्रक्रिया की चर्चा की थी जिससे शरीर के चयापचय को अनुकूल किया जा सकता है तथा शरीर की कोशिकाओं के जीवन काल में वृद्धि कर, अपने शरीर के वृद्ध होने की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता हैं। । योग की प्रारंभिक क्रियाओ का यह पहला तत्कालीन लाभ है । आशा है कि पाठकों ने पिछले लेख में वर्णित उदर-श्वास-क्रिया का अभ्यास किया होगा। योग आपके लिए तभी सार्थक है जब आप उसका नियमित रूप से अभ्यास करें क्योंकि योग अनुभव का विषय है, आपका निजी अनुभव ।
अब हम उदर-श्वास-क्रिया में एक छोटा-सा परिवर्तन करेंगे,
१. अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा कर के बैठें। आँखें बंद कर सारा ध्यान नाभि पर रखते हुए उदर श्वास की क्रिया करते रहें। अपने श्वास को धीमा, गहरा और लम्बा करें ।
२. एक लंबी सांस लें और साँस बाहर छोड़ते समय अपना मुँह खोल राहत की एक सांस छोड़े। यदि आप इस प्रश्वास को जागरूकता के साथ करते है, तो अापको एहसास होगा कि हवाएक हल्की फुफकार के साथ आपके गले के अंदरूनी हिस्सों को छूकर बाहर जाती है ।
३. अब यही प्रक्रिया अपने मुंह को बंद करके दोहराएं । प्रत्यक्ष रूप से नासिका छिद्र को छूए बिना, श्वास को एक हल्की फुफकार के साथ अपने कन्ठ से जाता हुआ महसूस करें ।
४. श्वास भीतर लेते हुए भी उदर पर ध्यान रखें, हवा कन्ठ में हल्की फुफकार के साथ निकलती हुई ।
५. इस श्वास प्रतिश्वास की प्रक्रिया को मुंह बंद कर जारी रखें ।
ऊपरोक्त क्रिया उज्जयी प्राणायाम कहलाती है और इसका उपयोग आगे की सभी क्रियाओं में किया जाएगा। श्वास लेने के सही तरीके से हमारे स्वास्थ्य और चित्त की अवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अगर आप प्रकृति में विभिन्न जानवरों की श्वास दर पर गौर करें तो पाएँगे कि धीमी गति से श्वास लेने वाले पशुओं का जीवनकाल सबसे लंबा होता है, जबकि तेजी से श्वास लेने वाले जानवरों का जीवनकाल अल्प । एक मिनट में ७०-८० श्वास लेने वाले कुत्ते का जीवन अधिकतम १२-१३ वर्ष होता है, जबकि एक कछुआ जो १५० साल के अास पास तक जीवित रहता है, वह एक मिनट में बस एक-दो बार ही श्वास लेता है।
श्वास प्रक्रिया के दौरान, अत्यधिक ऊर्जा का उत्पादन होता है, लेकिन उसके सामान एवं विपरीत प्रतिक्रिया के रूप में , विषाक्तता बड़ी मात्रा में, 'आम' के रूप में उत्पन्न होती है। यही विषाक्त पदार्थ कोशिकाअों के क्षय तथा वृद्धअवस्था का मुख्य कारण हैं । जितनी तेजी से हम साँस लेते है, उतनी ही तेजी से विषाक्त पदार्थों का उत्पादन होता हैं परिणाम स्वरुप उतनी ही गति से कोशिकाओं का क्षय होता हैं और शरीर वृद्धावस्था की और उतनी ही गति से बढ़ता है ।
उज्जयी प्राणायाम, एक सम्पूर्न संतुलन एवं शुद्धीकरण की तकनीक है , जो शरीर के तापमान को बढ़ा कर विषाक्त पदार्थों (जिनका उत्पादन श्वास क्रिया में होता है ) को नष्ट करती है और साथ ही पूर्ण संतुलन के लिए शरीर को ठंडा भी करती है।। इसलिए इस प्राणायाम को प्रतिदिन करने से कोशिकाओं के क्षय होने का दर काम हो जाता है फल स्वररूप मुख पर तेज एवं आकर्षण प्रत्यक्ष दिखने लगता है। इसका प्रमाण है ध्यान आश्रम के सभी साधक जो बिना किसी कॉस्मेटिक्स के न केवल सुन्दर दीखते हैं अपितु रोगमुक्त एवं तनावमुक्त रहते हैं।
यह प्राणायाम तत्काल ही शरीर को पूर्ण रूप से शांत एवं स्थिर करने में भी सहायक है । जब भी आप क्रोध में होते हैं या परेशान, चिंता , अथवा डरे हुए या भावनात्मक हों – सबसे पहला लक्षण होता है- श्वास की गति का तेज़ होना ! ! इन परिस्थितियों में आप उज्जयी प्राणायाम का अभ्यास कर स्वयं ही अपने शरीर पर इस का प्रभाव अनुभव कर सकते हैं।
श्वास लेने के सही तरीके और उसके शरीर पर होने वाले प्रभाव की इस बुनियादी समझ को प्राप्त कर लेने के बाद, अगले सप्ताह हम भौतिक स्तर पर स्वयं को समझने के लिए, सनातन क्रिया के अन्तर्गत विस्तृत, च्च्जॉइंट रोटेशन्सज्ज् का अभ्यास शुरू करेंगे।