Ferozepur News

बच्चों को स्कूल में भर्ती करके अभिभावकों को निश्चिंत नहीं होना चाहिए : राज किशोर कालड़ा

बच्चों को स्कूल में भर्ती करके अभिभावकों को निश्चिंत नहीं होना चाहिए : राज किशोर कालड़ा

Ferozepur, August 10,2015 : छात्रों के विकास में घर और स्कूल की भूमिका शिक्षार्थी, शिक्षक, विद्यालय, वातावरण और अभिभावक इन सभी का तालमेल ठीक चलने से शिक्षा की सफलता और उपयुक्ता बन पड़ती है। इन सभी पक्षों की ओर समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए। जिससे दोष या श्रेय किसी एक पक्ष को नहीं देना चाहिए, वरना ऐसे निरीक्षण की व्यवस्था हो, जिसमें असावधानियां का समय रहते समाधान होता रहे। एक दूसरे की कठिनाईयों की जानकारी होने से ही उसका उपाय खोजा जा सकता है।

बच्चों को स्कूल में भर्ती करके अभिभावकों को निश्चिंत नहीं होना चाहिए। किशोरावस्था ऐसी है, जिसमें जोश बहुत और होश कम होता है। कुसंग मेमं पडऩे, दुर्गुण सीखने, उद्दंग बनने की आशंका इन्हीं दिनों रहती है। साथ ही यह भी है कि शालीनता और सत्यप्रवृत्तियों का स्वभाव में समावेश भी ठीक इन्हीं दिनों होता है। बच्चों पर अविश्वास करना ठीक नहीं, पर बारीक नजर इस बात की भी रखी जानी चाहिए कि शिक्षा में समुचित, अभिरूचि लेने के अतिरिक्त शिष्टाचार मेमं कहीं कोई छिद्र तो नहीं बन रहा है। अनुशासन के प्रति उपेक्षावृत्ति तो नहीं पनप रही है। बच्चों का अधिकांश समय घर में या स्कूल में व्यतीत होता है। पढ़ाई का कार्य अध्यापक पूरा करते हैं, पर व्यक्तिगत संपर्क साधने का कोई उपयुक्त माध्यम न होने के कारण उन्हें यह पता नहीं चलता कि घर पर लडक़ों का रहन-सहन क्या रहता है। इसी प्रकार अभिभावकों को यह पता नहीं चल पाता कि स्कूल के समय में विद्यार्थी किस प्रकार की गतिविधियां अपनाता है ओर अपने स्वभाव का परिचय किस स्तर का देता है। अच्छा हो हर कक्षा के अध्यापक अपने विद्याॢथयों की गोष्ठियां भी लिया करें और सामान्य सिद्धांत, सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत चर्चा निजी रूप से किया करें। इस प्रकार दोनों समझदार वर्गों के प्रयत्नों से बच्चों की प्रगति का उपाय उपचार चलता रह सकता है। छात्रों की पढ़ाई पर ही नहीं, व्यवहार पर भी समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रतिभा निखारने का ठीक यही समय है। व्यक्तित्व का जैसा भी कुछ भला बुरा निर्माण कच्ची आयु में बन जाता है, प्राय: आजीवन वैसा ही बना रहता है। आयु पकने पर समझदारी तो बढ़ती है, पर आदतें जिस प्रकार की उठती आयु मेमं बन जाती हैं, प्राय: वैसी ही बनी रहती हैं।

अभिभावकों की चरित्रनिष्टा कार्यप्रणाली असंदिग्ध हो। उनकी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अवांछनीयता बच्चों से बच नहीं सकती। उनकी संवेदनशीलता अच्छाईयों की उपेक्षा बुराईयों की ओर अधिक आकॢषत होती हैं। यहां खोट के कोई छिद्र रहेंगे तो छात्रों का व्यक्तित्व निखर न पाएगा। भले ही वे तीव्र बुद्धि के कारण प्रतीभा किसी भी स्तर की अॢजत कर लें। स्कूलों का शैक्षिक वातावरण बनाने की चेष्टा अध्यापकों को करनी चाहिए। वहां स्वच्छता, शालीनता, सहकारिता और निर्धारित कार्यक्रमों को पूरा करने में तल्लीनता का वातावरण रहे। इसी प्रकार घर में उन्हें दुलार और सहानुभूति तो मिले ही, साथ ही सत्यप्रयत्नों की प्रशंसा भी होती रहे। सुधार और समीक्षा का क्रम तो चले, पर वह इतना कड़वा न हो कि खीज उत्पन्न करे ओर बच्चों को विद्रोही बना दें। घर और स्कूल दोनों का वातावरण बच्चों को सुविकसित करता है।

इसी प्रकार अध्यापक और अभिभावक अपने अपने ढंग से अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हुए छात्रों को समुत्रत स्तर का बना सकते हैं। शक्षाविद राज किशोर कालड़ा अध्यक्ष सोशल वैल्फेयर सोसायटी बस्ती हजूर ङ्क्षसह फाजिल्का। मो. 94633-01304

Related Articles

Back to top button