जोड़ों के दर्द से पाएं मुक्ति : योगी अश्विनीजी
आज के समय में आर्थ्राइटिस के अधिकतम रोगी इसके उपचार के लिए फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं, इस तथ्य से अनभिज्ञ की इस रोग का मूल कारण मनोदैहिक हैं| तनाव और नकारात्मक भावनाओं का संचय, जो अधिकतम युवाओं को तीस वर्ष की आयु से पूर्व ही उन्हें घेर लेता है, इस रोग को उत्पन्न करता है| इस भावनात्मक संकुलन के कारण शरीर के जोड़ों में मौजूद महत्वपूर्ण द्रव पदार्थ धीरे-धीरे सूखने लगते हैं जिसके फल स्वरुप जोड़ों में घर्षण उत्पन्न होता है और वे समय के साथ कमज़ोर होते जाते हैं |
चूँकि इस समस्या का मुख्य कारण मनोदैहिक, अर्थात स्थूल शरीर से परे है, इसलिए इसका निवारण भी समग्र दृष्टिकोन से करना उचित होगा| 'सनातन क्रिया – एजलेस डाइमेंशन' पुस्तक में मैंने इस रोग उत्पन्न करने वाली नकारात्मक भावनाओं के संचय से मुक्ति पाने हेतु एक सरल तकनीक का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है, जिसमें अपने सूर्य चक्र से इन नकारात्मक भावनाओं से उत्पन्न भारी प्राण के साथ कन्नेक्शन्स को काट दिया जाता है |
इसके अलावा नीचे दिए गए आसनों का अभ्यास करने से भी लाभ मिलता है। इनको करते समय पीठ सीधी रखकर बैठें, हाथों को इस प्रकार सीधा रखें कि आपकी हथेलियाँ जमीन पर आपकी कमर के समीप रखी हुई हों और आपके पैर आगे की दिशा में फैले हुए हों| अपनी आँखें बंद कर लें।
जानू आकर्षण – धीरे से श्वास अंदर लेते हुए अपने दाहिने घुटने को जमीन की ओर दबाएँ| सात गिनने तक इसी अवस्था में में बैठे रहें| अब श्वास को बाहर छोड़ते हुए, अपने दाहिने घुटने को धीरे-धीरे विश्राम अवस्था में ले आएं | यह प्रक्रिया सात बार दोहोराएँ| यही प्रक्रिया बाएँ घुटने के साथ करें और फिर दोनों घुटनों को एक साथ |
जानू चक्र – पीठ सीधी रखते हुए अपने दाहिने घुटने को अपने सीने के समीप लाएँ। अपनी दाहिनी जाँघ को दोनों हाथों से पीछे से आलिंगन करते हुए दाहिने घुटने का सात बार चक्रानुक्रम करें, पहले घड़ी की सुई की दिशा में और फिर उसकी विपरीत दिशा में | हर आधे चक्रानुक्रम के दौरान श्वास को अंदर लें तथा शेष आधे चक्रानुक्रम के दौरान श्वास को बाहर छोड़ें| यही प्रक्रिया अपने दूसरे पैर के घुटने पर भी दोहोराएँ|
आखिर में शवासन में लेट जाएँ और अपना ध्यान शरीर के प्रत्येक जोड़ पर एक-एक कर ले जाएं और अपनी चित्त की शक्ति से इन्हें सशक्त करें। शरीर के उन हिस्सों पर अधिक समय तक रहें जो कमजोर हैं|
आयुर्वेद के अनुसार शरीर की तिल एवं नीम अथवा दालचीनी के तेल से नियमित रूप से मालिश, जोड़ों को सशक्त एवं स्वस्थ रखने में अत्यंत लाभदायक है|
टिपण्णी : इन आसनों व क्रियाओं को गुरु के सानिध्य में करने से इनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि इन आसनों में गुरु द्वारा शक्ति का सञ्चालन किया जाता है। इनका पूर्ण लाभ पाने हेतु ध्यान फाउंडेशन से संपर्क करें।
योगी अश्विनीजी ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक हैं एवं वैदिक विज्ञानों के विशेषज्ञ हैं|उनकी पुस्तक ‘'सनातन क्रिया – एजलेस डाइमेंशन' चिरयौवन के विषय पर एक थीसिस के रूप में प्रख्यात है| अधिक जानकारी के लिए www.dhyanfoundation.com पर जाएँ अथवा dhyan@dhyanfoundation.com पर संपर्क करें|