जल नेति द्वारा ज़ुखाम को दूर रखें : योगी अश्विनीजी
आज के समय में बाह्य आकृति को ही सर्वोच्च माना जाता है, इसलिए हर कोई आकर्षक शरीर, चमकती हुई त्वचा एवं सौन्दर्य की चाहत रखता है| परिणाम स्वरूप जहाँ एक ओर मल्टीनेशनल कंपनियों की वृद्धि हो रही है, वहीँ दूसरी ओर उनके द्वारा उत्पादित “फैड डाइट”, हानिकारक रसायनों से भरे कॉस्मेटिक्स व अन्य विषैले पदार्थों के सेवन से मानव स्वास्थ्य व आयु में गिरावट आ रही है ।
'सनातन क्रिया – एजलेस डाइमेंशन' पुस्तक में ऐसे रसायनों का विस्तार से विवरण किया गया है, जिनका हम प्रतिदिन उपयोग की जानेवाली वस्तुओं एवं प्रसाधनों द्वारा सेवन करते हैं तथा इनके द्वारा शरीर पर होनेवाले दुष्प्रभाव और इनसे बचने के मार्ग का भी उल्लेख है|
आज के समय में ये अत्यंत आवश्यक है की हम अपनी जीवन शैली में नियमित रूप से शरीर का बाह्य एवं आंतरिक शुद्धिकरण करने वाली प्रक्रियाओं को सम्मिलित करें, जिससे शरीर स्वस्थ तथा रोग मुक्त रहे |पाठकों के लाभ हेतु यहाँ मैं एक ऐसी ही परखी हुई प्रक्षालन प्रक्रिया का उल्लेख कर रहा हूँ , 'जल नेति'| जल नेति प्राचीन वैदिक प्रक्रिया है, जिसे हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व दिया था, जो अब पाश्चात देशों में “नेज़ल क्लेनज़िंग” के नाम से भी प्रचलित है |
लाभ: जल नेति की प्रक्रिया न केवल शरीर की संक्रामक ज़ुखाम के कीटाणुओं से रक्षा कर , स्वच्छ रखती है अपितु शरीर की जरन क्रिया को भी धीमा कर देती हैं , जिस से आपके चेहरे पर तेज और आकर्षण स्वतः ही आ जाता है, बिना किसी कॉस्मेटिक का प्रयोग किए। ध्यान आश्रम के साधकों के मुख पर तेज इसका प्रमाण है| यह प्रक्रिया शरीर से कीटाणुओं को खून में प्रवेश पाने के पूर्व ही नासिकाओं द्वारा बाहर निकाल फैकने में अत्यंत कारगर है, इसलिए शरीर को इन कीटाणुओं से उत्पन्न होनेवाले रोगों से सुरक्षा मिलती है|
इसके अतिरिक्त जल नेति प्रक्रिया को नियमित रूप से करने से शरीर की सुरक्षा प्रणाली में सुधार आता है और नासिक एवं कंठ में होनेवाले संक्रमण से रक्षा मिलती है| जो लोग प्रदूषित वातावरण में रहते हैं अथवा जो दमा और कमजोर श्वसन प्रणाली के शिकार हैं, उनको जल नेति राहत प्रदान करती है और इन बीमारियों को उत्पन्न करनेवाले ऐलर्जन का सफलतापूर्वक सामना करने हेतु शरीर को सक्षम बनाती है |
जलनेति की प्रक्रिया:
नेति के बर्तन में ५००मिलीलीटर गुनगुना पानी लेकर उसमें १ छोटा चम्मच काला नमक और चुटकीभर हल्दी डालें| अपने दोनों पैरों पर सामान भार रखकर खड़े हो जाएँ और आगे की दिशा में थोड़ा सा सर को बाई ओर ४५ डिग्री एंगल में झुकाएँ| जल नेति के बर्तन की नोक को अपनी दाहिनी नथुने में हलके से डालें| मुँह से प्राकृतिक रूप से सांस लेते हुए नेति के बर्तन को इस तरह हलके से झुकाएँ, जिससे उसकी नोक से जल निकालकर दाएं नथुने के भीतर से गुजरते हुए बाएं नथुने से बाहर प्रवाहित हो| इस प्रक्रिया को दुसरे नथुने से भी करें| इसके बाद प्राकृतिक रूप से धीरे-धीरे साँस लें|
खारा पानी एक अत्यंत उत्तम प्रक्षालन करनेका माध्यम है, जो नासिकाओं में जमें रोग उत्पन्न करनेवाले कीटाणुओं और विषाणुओं को सोख बहार फैंक देता है| हल्दी निस्संक्रामक और रोगाणुरोधक पदार्थ है|
नेति की प्रक्रिया के बाद अपनी नासिका में कुछ बूँदें देसी घी डालें और १०-१५ मिनट के लिए शान्ति से लेटें| जल नेति प्रतिदिन करने से इनफ़्लुएंज़ा और ज़ुखाम से सरलता से शरीर की सुरक्षा की जा सकती है |
योगी अश्विनीजी ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक हैं एवं वैदिक विज्ञानों के विशेषज्ञ हैं|उनकी पुस्तक ‘'सनातन क्रिया – एजलेस डाइमेंशन' चिरयौवन के विषय पर एक थीसिस के रूप में प्रख्यात है| अधिक जानकारी के लिए www.dhyanfoundation.com पर जाएँ अथवा dhyan@dhyanfoundation.com पर संपर्क करें|