अस्थमा का विशेष लक्षण फेफड़ों का सूखापन है: नियमित रूप से, नास्य शोधन के साथ अभ्यास करने से एक मजबूत और स्वस्थ श्वसन प्रणाली सुनिश्चित है
अस्थमा का विशेष लक्षण फेफड़ों का सूखापन है, जो शरीर में सुक्र के अभाव का परिणाम है। यह वायु के सामान्य संचय को बाधित कर देता है, जिससे श्वसन सम्बंधी विकार उत्पन्न होते है । फेफड़ों को अपने इष्टतम स्तर पर कार्य करने के लिए, डायाफ्राम के संचलन को अधिकतम करने कि जरूरत है, जिससे पेट का विस्तार और संकुचन अनुकूल हो जाएँ। यह तकनीकी लग सकता है; परंतु यह इतना सरल है, कि एक नवजात शिशु भी इसे जानता है। बस इतना करने की ज़रूरत है कि हम प्रकृति कि अोर, सनातन क्रिया कि अोर, वापस मुड़े।
श्र्वास लेते और छोड़ते समय, पेट की मांसपेशियों का क्रमशः विस्तार और संकुचन, ही श्र्वासन का प्राकृतिक तरीका है।यह उज्जयी प्राणायाम के रूप में जाना जाता है। फेफड़ों के कामकाज को अनुकूलित करने के अलावा, इसका अभ्यास एक शोधन प्रक्रिया के रूपमें भी कार्य करता है। आंतरिक जागरूकता को बनाए रखते हुए, उज्जयी में श्र्वास लेने से , शरीर पर दोहरा प्रभाव पड़ता है-पहले शरीर गर्म होता है और उसके बाद ठंडा होता है। इस प्रक्रिया से, सभी अशुद्धियाँ समाप्त होती हैं, और फेफड़ों सहित संपूर्ण शरीरपुनर्जीवित हो जाता है।
श्वास जीवन का अाधार है; यह सीधे अापके प्राणों कि स्थिती को नियंत्रित करता है। जबकि श्र्वासन ऊर्जा प्रदान करता है,एक उप-उत्पाद के रूप में बहुत विषाक्त पदार्थों का उत्पादन भी होता है, जो धीरे धीरे शरीर के आंतरिक तंत्रो को घोलने लगते है , और अंततःबीमारी के रूप में प्रकट होते है। जबकि उज्जयी इस विषाक्तता को निकालने का एक तरीका है, इसके लिए बेहद कारगर है सनातनक्रिया से एक और अभ्यास- नाड़ी शोधनम प्राणायाम ।
इस के लिए, वज्रासन में बैठें। दाहिने हाथ की बीच की उँगली, भौंहों के मध्य में रखें। अनामिका से बाएँ और अंगूठे से दाहिने नथुने कोनियंत्रित करें। बाएं हाथ को जांघ पर रखें। अब अपनी आँखें बंद रखते हुए, दाहिने नथुनेसे सांस भरें, और बाएँ नथुने से सांस छोड़ें। अबबाएँ नथुने से सांस भरें और दाहिने ओर से सांस छोड़ें। ऎसे एक चक्र पूरा होता है। इस चक्र को सात बार दोहराएँ। चार की गिनती गिननेंतक सांस भरें, और अपनी निजी क्षमता के अनुसार, आठ या बारह की गिनती गिनते हुए सांस छोड़ें।
उपर्युक्त तकनीक को नियमित रूप से, नास्य शोधन के साथ अभ्यास करने से एक मजबूत और स्वस्थ श्वसन प्रणाली सुनिश्चित है। नास्य शोधन के लिए जल नेति और उसके बाद, शुद्ध गाय के घी का अोंगन देना अावश्यक है।
योगी अश्विनी ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक है| www.dhyanfoundation.com. पर उनसे संपर्क किया जा सकता है