अच्छे स्वभाव से ही मनुष्य बनता है प्रशंसा का पात्र : कमलानंद गिरि जी
अच्छे स्वभाव से ही मनुष्य बनता है प्रशंसा का पात्र : कमलानंद गिरि जी
स्वामी जी बोले- धन-दौलत, सौंदर्य व सत्ता बेशक न हो, स्वभाव हो अच्छा
— फिरोजपुर के श्री नीलकंठ मंदिर में दिव्य श्री राम कथा में उमड़ रहे श्रद्धालु
फिरोजपुर, 17 नवंबर () : श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद जी महाराज ने कहा कि दूध
स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। मगर यदि उसमें चीनी की बजाए नमक डाल दिया जाए तो वे पीने योग्य नहीं रहता। इसी तरह भोजन स्वास्थ्य के लिए
अच्छा है, परंतु उसमें नमक की जगह चूर्ण डाल दिया जाए तो भोजन खराब हो जाता है। कुछ इसी प्रकार मनुष्य जन्म है। अगर मनुष्य जन्म को सुधारना है
तो इसे सही दिशा में लेकर चलो। प्रभु सिमरन करते रहो। अगर मनुष्य जन्म पाकर भी प्रभु सिमरन न किया तो समझो दूध में चीनी की जगह नमक व भोजन में
नमक की जगह चूर्ण डाल हम अपने जन्म को खराब कर रहे हैं। स्वामी कमलानंद जी महाराज ने ये विचार श्री कल्याण कमल सत्संग समिति फिरोजपुर की ओर से
मोची बाजार स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास बने श्री नीलकंठ मंदिर में दिव्य श्री राम कथा के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त
किए। उन्होंने कहा कि अगर किसी मनुष्य के पास अकतू धन, सत्ता व सौंदर्य है। मगर उसका स्वभाव नीम की तरह कड़वा, मिर्च की तरह तीखा, नींबू की तरह
खट्टा है तो ऐसे मनुष्य की धन-दौलत, सौंदर्य व सत्ता उसके लिए किसी भी प्रशंशा का कारण नहीं बनेंगे। मनुष्य का स्वभाव अच्छा होना चाहिए तभी वे
प्रशंसा का पात्र बनता है। धन-दौलत, सौंदर्य व सत्ता बेशक न हो, परंतु यदि स्वभाव अच्छा है तो सभी आपकी प्रशंसा करेंगे। स्वामी कमलानंद जी ने
कहा कि किसी से कड़वे वचन न बोलें। मनुष्य की प्रेम से भरी मीठी नजर ही बड़े से बड़े द्वेष भरे जहर को खत्म करने के लिए काफी है। इसलिए सभी से
मीठे से बोलें।
स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने श्रद्धालुओं को मानव जीवन का महत्व बताते हुए कहा कि जिंदगी तीन पन्ने की किताब का नाम है। उसमें पहला पृष्ठ
है जन्म का, जो मनुष्य को लिखा हुआ ही मिला है। तीसरे पृष्ठ का नाम है मृत्यु, वे भी लिखा हुआ ही मिला है। दूसरे नंबर का पन्ना है जीवन का, जो
मनुष्य को कोरा ही मिलता है उस पर क्या लिखना है ये मनुष्य पर खुद निर्भर करता है। मजे की बात तो ये है कि उस पृष्ठ पर मनुष्य जो लिखेगा, जैसा
लिखेगा उसी के आधार पर तीसरे नंबर का पन्ना मिलने वाला है। अर्थात मृत्यु का ये पृष्ठ निश्चित है, मगर ये पृष्ठ उज्जवल मिलेगा या मलिन, इसका
निर्णय मनुष्य खुद जीवन के दूसरे पन्ने में लिखकर कर सकता है। अर्थात मनुष्य को कोरे जीवन में खुशियों का रंग खुद ही भरना पड़ता है।
श्री राम कथा दर्पण समान, इसके जरिए देखें खुद का असल व्यक्तितत्व चौपाई ‘रामायण सुरधेनु समाना, दायक अभिमत फल कल्याणा’ का अर्थ बताते हुए
कहा कि रामायण कामधेनु के समान है। सेवा करने वाले को मनवांछित फल देती है। इस रामायण के गुणों की गणना कौन कर सकता है। इसका प्रभाव चिन्तामणि
के समान है। श्री राम कथा एक दर्पण है। ठीक ध्यान से अगर कोई इसका चिंतनमनन करे, इसकी उपासना करे, नित्य पारायण करे, गाए व सुने तो दृढ़ विश्वास
है कि कथा के अंत में उसे अपना आभाव, जीवन की त्रुटियां, खामियां, दोष कहां है और पतित पावन परमात्मा का प्रभाव कैसा-कैसा है इन बातों का
निर्णय हो जाएगा।श्री उत्तरकांड के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने कहा कि अयोध्या में सब शगुन हो रहे हैं। सबका मन प्रसन्न है। नगर चारों और से रमणीय हो गया है। मानो सब शुभ शगुन प्रभु के आगमन को जना रहे हैं। मगर भरत जी ने
जब खड़ाऊ ली थी तो उसी समय भरत जी ने श्री राम जी से निवेदन किया था कि चौदह वर्ष की अवधि के बाद एक क्षण भी ज्यादा हो गया तो वे इस शरीर को
त्याग देंगे। हनुमान जी भरत आगमन की सूचना लेकर जब अवध पहुंचे तो देखा कि भरत जी कुषा के आसन पर बैठे हैं। शरीर दुर्बल हो रहा है। सिर पर
जटा-जुटों का मुकुट है। राम-राम रघुबीर ऐसा जप कर रहे हैं। उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। भरत जी को देखते ही हनुमान जी को बड़ा आनंद हुआ। जब एक
भक्त दूसरे भक्त को मिलता है उसका रोम-रोम खिल उठता है। इसलिए सभी को भगवद् जनों का संग करना चाहिए। कथा मौके मंदिर कमेटी के अध्यक्ष कमलेश वोहरा, शिव धवन, राकेश अग्रवाल, त्रिलोचन चोपड़ा, अरविंद बांसल, राकेशअग्रवाल, हरीश गोयल, सतपाल शर्मा, बलविंदर खुंगर, प्रदीप कक्कड़ समेत बड़ी गिनती में श्रद्धालु मौजूद थे। इस मौके अटूट लंगर प्रसाद भी वितरितहुआ।