पीठ एवं रीढ़ के आसन- भाग ३ योगी अश्विनी
पीठ एवं रीढ़ के आसन- भाग ३
योगी अश्विनी
लेखों की इस श्रृंखला में हम रीढ़ को सशक्त करने वाले आसनों पर चर्चा कर रहे थे. .आसनो को प्रायः भूल से वजन कम करने वाला व्यायाम समझ लिया जाता है. जहाँ वयायाम केवल स्थूल शरीर से सम्बन्ध रखता हैं वहीँ आसन शरीर के पांचों कोशों पर कार्य करते हैं तथा चेतना की शक्ति का उपयोग करने में प्रशिक्षित करते है . इसके अलावा व्यायाम शरीर की रस प्रक्रिया की गति को बढ़ाते हैं, जिसके फलस्वरूप शरीर वृद्धावस्था की ओर तीव्र गति से बढ़ता है, वहीं आसान इस प्रक्रिया को धीमां कर देते हैं। ऋषि पतंजलि आसनों का वर्णन च्स्थिर सुखं आसनम' के रूप में किया है , अर्थात ऐसी अवस्था जिसमें आप शांत और स्थिर हो , इस स्थिरता एवं धीमी गति में ही दीर्घ आयु की कुंजी है .
सनातन क्रिया में सुषुम्ना नाड़ी में प्राणों के प्रवाह के अनवरुद्ध सञ्चालन के लिए आसनों का विवरण है, जिसके परिणाम स्वरुप रीढ़ दृढ एवं सशक्त होती है . सनातन क्रिया योग सूत्रों का सार है, जिसे ध्यान आश्रम के हज़ारों साधकों द्वारा जांचीं व् परखी जा चूका है. योग का विज्ञान इतना सटीक है कि इसमें एक भी आसन ऐसा नहीं है जो पांचवें एवं छटे वर्टीब्रा (रीढ़ के जोड़) में तनाव पैदा करे क्योंकि इन पर किसी भी प्रकार का तनाव रीढ़ की हड्डी को क्षति पहुंचा सकता है. इसके विपरीत रीढ़ की चोट का योग के सही अभ्यास द्वारा सफलतापूर्वक उपचार संभव है .
अर्ध शलभ आसन : अपने पेट के बल लेट जाइए और अपना दायाँ हाथ आगे की ओर तथा दूसरा हाथ शरीर के बगल में रखते हुए पीछे की ओर खींचिए,, हथेलियाँ और माथा ज़मीन पर सपाट रखिए. .अब श्वास अंदर लेते हुए अपना बायाँ पैर उठाइए इस अवस्था में सात गिनने तक रहे फिर श्वास बाहर छोड़ते हुए अपने पैर को पुनः नीचे ले आइए इस क्रिया को सात बार दोहराएं . अब इस क्रम को बदलते हुए अर्थात बाईं भुजा आगे की ओर तथा दूसरी भुजा पीछे की ओर खींचिए, एवं दायाँ पैर उसी शैली में उठाएं। इस क्रिया को सात बार दोहराएं.
यान आसन: अपने पेट के बल लेट जाइए माथा ज़मीन पर रहेगा और श्वास अंदर लेते हुए अपने दोनों पैरों (शुरुआत में सुविधा के लिए दोनों पैरों को कुछ दूरी पर रख सकते हैं) और हाथों को ऊपर की ओर उठाइए,. अपने शरीर का सारा संतुलन उदर भाग पर रखते हुए इस अवस्था में सात गिनने तक रहे फिर श्वास छोड़ते हुए अपने हाथों और पैरों को नीचे ल आएं. इस क्रिया को सात बार दोहराएं.
भुजंग आसन : अपने पेट के बल लेट जाइए और अपनी दोनों हथेलियां ज़मीन पर अपनी छाती के बगल में रखिए, माथा ज़मीन पर और एड़ियां जुडी हुई रहेंगी , श्वास अंदर लेते हुए और ऊपर आसमान की ओर देखते हुए अपने शरीर के ऊपर के भाग को रीढ़ के बल पर ऊपर की ओर उठाएं, अपने हाथों को केवल सहारे के लिए ही प्रयोग में लाएं . इस आसन को बहुत सावधानी से करें. इस अवस्था में सात गिनने तक रहे फिर श्वास छोड़ते हुए पुनः नीचे आ जाएं. इस क्रिया को सात बार दोहराएं.
इन आसनों को करते समय अपनी आंखे बंद रखें और अपनी गति का तालमेल अपनी श्वास से बनाएं। अगर किसी भी समय आप असहज महसूस करें या आपकी सांस फूलने लगे तो आसन वहीँ रोक दें .
टिप्पणी : पूर्ण लाभ के लिए आसन व अन्य योग क्रियायें गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए .
इन आसनों को अगर गुरु के सानिध्य में सही प्रकार से किया जाए तो ये आसन सुषुम्ना नाड़ी के सभी अवरोधों को खोल देते हैं जिस से इसमें प्राणों का अनवरुद्ध सञ्चालन होता है – यौवन, सुदंरता, तेज एवं एक सशक्त रीढ़ , स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं
योगी अश्विनी जी ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक है7 222.स्रद्ध4ड्डठ्ठद्घशह्वठ्ठस्रड्डह्लद्बशठ्ठ.ष्शद्व. पर उनसे संपर्क किया जा सकता है