आध्यात्मिक चिकित्सा : यतु विद्या योगी अश्विनी
शरीर में रोग उत्पन्न होने का कारण है – असंतुलन । । इस असंतुलन को आध्यात्मिक चिकित्सा द्वारा जड़ से मिटाया जा सकता है। जहाँ एक ओर आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोगों का दमन अथवा रोगग्रस्त कोशिकाअों को नष्ट कर उपचार करती है ,, वहीँ दूसरी ओर आध्यात्मिक चिकित्सा में रोग के मूल कारण को ही नष्ट कर दिया जाता है।
ऋषि अंगिरस ने आध्यात्मिक चिकित्सा का वर्णन अथर्ववेद में ‘यतु विद्या’ के अंतरगत विस्तारपूर्वक किया है।आध्यात्मिक चिकित्सा का प्रभाव अविलंभ होता है। इस चिकित्सा प्रणाली में उपचार रंगों के माध्यम से किया जाता है । इस सृष्टि में विभिन्न रंग हैं और प्रत्येक रंग के अनगिनत भेद (शेड्स) विद्यमान हैं। प्रत्येक शेड की एक निश्चित विशेषता होती है । इनमें से कुछ सुखद अनुभूति कराते हैं तो कुछ निराशा के प्रतीक हैं। इसी तरह भिन्न भिन्न रंग प्रेम, दिव्यता, सत्ता, क्रोध इत्यादि के भी प्रतीक हैं। प्रत्येक रंग दूसरे से भिन्न है इसलिए शरीर पर प्रत्येक का प्रभाव भी दूसरे से भिन्न होता है। इन रंगों के प्रयोग से एक अध्यामत्मिक चिकित्सक रोगी के सूक्ष्म कोशों में प्रवेश कर रोग के मूल कारण में परिवर्तन करता है।
एक छोटे से प्रयोग द्वारा इसे समझते है
१. अपनी आँखें बंद करके किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं ।
२. अब अपने हाथों को रगड़, अपनी हथेलियों को अपनी नाभि के स्तर पर एक दूसरे के आमने सामने रखें ।
अपनी हथेलियों सहित अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें ।
३ अब अपना सारा ध्यान अपनी हथेलियों के केंद्र में ले जाएं , और वहाँ अपना ध्यान रखते हुए, हथेलियों को एक दूसरे से दूर और फिर धीरे धीरे एक दूसरे के निकट लाएं। इस दौरान अपनी हथेलियों में होने वाली किसी भी प्रकार की अनुभूति को ध्यान में रखें ।
४. इस प्रक्रिया को कुछ देर तक दोहराएं। अपनी हथेलियों के केन्द्र में अापको जो भी अनुभव हो, उसको नॉट कर लें। अब धीरे धीरे अपनी आँखें खोलें ।
आप में से कुछ लोगों ने निश्चित रूप से कुछ ना कुछ अनुभव अवश्य किया होगा।मुझे अपना अनुभव लिखें।
आपने अभी जो कुछ भी अनुभव किया है, वह आपके स्वयं का पहला अनुभव है, जिस तरह आप इस स्थूल शरीर के परें विद्यमान हैं , आप ही की एक सूक्ष्म परत प्राणमय कोश का अनुभव, जिसे ‘औरा ‘ के नाम से भी जाना जाता है ।
हम सभी ने कभी न कभी महापुरुषों के चित्र अवश्य देखें होंगे जिनमें उनके सिर के अास पास स्वर्ण आभा होती है और उनके स्थूल शरीर के चारों ओर दिव्य श्वेत रौशनी। यही होता है प्राणमय कोश , जिसका आपने अभी अभी अनुभव किया है ।
अापके स्थूल शरीर का नियंत्रण, प्रत्येक क्षण, इसी सूक्ष्म प्राणमय कोश द्वारा होता है । सनातन क्रिया में कुछ ऐसी तकनीकों का उल्लेख है जिनके द्वारा हम इस सूक्ष्म कोश में प्रवेश कर किसी भी असंतुलन को सूक्ष्म स्तर पर हटा सकते हैं , स्थूल शरीर में उस रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व । ध्यान आश्रम के साधकों ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन में इस विज्ञान का एक ‘लाइव’ प्रदर्शन किया था, जहां उन्होंने डॉक्टरों द्वारा दी गई तस्वीरों को मात्र देखने से ही, रोगियों के प्राणमय कोश की स्कैनिंग कर, उनके असंतुलन/रोग का सटीक वर्णन किया था ।
परंतु यहाँ मैं पाठकों को सावधान करना चाहूँगा कि यह एक अत्यंत शक्तिशाली विज्ञान है. एक आध्यात्मिक चिकित्सक को इस विज्ञान का प्रयोग करने से पूर्व ध्यान एवं योग की कुछ क्रियाअों का नियमित अभ्यास कर स्वयं को चेतना के एक स्तर पर लाना होता है, साथ ही सदैव यह ध्यान रखना होता है की इस चिकित्सा का प्रयोग गुरु कृपा से ही संभव है। चिकित्सक को चाहिए की वह रोगी से विद्या के बदले किसी प्रकार का लेन देन न करे । इसके अतिरिक्त शुद्धिकरण और अनुशासन का पालन करना आवश्यक होता है। इनमें से किसी भी एक की अवहेलना आध्यात्मिक चिकित्सक को क्षति पहुँचा सकती है ।
आध्यात्मिक चिकित्सा की इस श्रृंखला में मैं इस प्राचीन एवं विकसित विज्ञान की कुछ तकनीकों का वर्णन करूँगा जो प्रकृति के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं ।
योगी अश्विनी ध्यान फाउंडेशन मार्गदर्शक तथा वैदिक विज्ञान के विशेषज्ञ हैं । ' सनातन क्रिया – डी एसेंस ऑफ़ योग' में उन्होंने आज के मानव के लिए अष्टांग योग के विज्ञान का सम्पूर्णता से उल्लेख किया है । अधिक जानकारी के लिए www.dhyanfoundation.com या dhyan@dhyanfoundation.com पर संपर्क करें