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आध्यात्मिक चिकित्सा : चोट / घाव की चिकित्सा

“ नज़र लग जाना” – यह कथन आपने अवश्य पहले  सुना होगा।  यह मात्र कही – सुनी बात या फिर अन्धविश्वास नहीं है, यह एक वास्तविकता है जिस के पीछे विज्ञान छिपा है ।  

 

संपूर्ण सृष्टि, हमारे आस पास दिखने वाली प्रत्येक वस्तु – पेड़ पौधे , कीट -पतंगे , पशु – पक्षी और  मनुष्य भी  – सभी ऊर्जा के भिन्नभिन्न स्वरूप हैं। इस ऊर्जा का न तो सृजन संभव है और न ही विध्वंस, यह केवल अपना स्वरूप बदलती है। हर वस्तु का  स्वरूप दूसरे से भिन्न है क्योंकि उसमें  ऊर्जा की आवृत्ति ( फ्रीक्वेंसी ) भिन्न  है। जहाँ पशु-पक्षियों  की ऊर्जा की आवृत्ति स्थूल होती है, देवजनों की आवृत्ति अत्यंत सूक्ष्म।   

 

इस आवृत्ति को स्थूल अथवा सूक्ष्म क्या बनाता है ? इच्छाएं, जो हमें  क्रियाशील भी करती हैं, और हमारे कर्म, पूर्व जन्मों के और वर्तमान जन्म के भी  ।  किया गया कार्य,  मुख से निकल वचन या फिर केवल एक विचार- ये सभी कर्म हैं।  मास्टर चोआ कोक सुई का कथन “ऊर्जा विचार के पीछे पीछे जाती है “ सत्य है।   प्रत्येक विचार भी उतना ही शक्तिशाली होता है जितना की एक किया हुआ कार्य। इसलिए किसी का एक प्रबल विचार भी बिना सुने, बिना देखे, बिना कहे आपको चोट पहुंच सकता है।  

 

आध्यात्मिक चिकित्सा का साधक  अपनी चेतना की सहायता से दूसरों के कर्मों में परिवर्तन कर , रोगी को रोगमुक्त करता है।  परंतु ऐसा करने में वह अपने सत कर्मों का कुछ भाग रोगी के कर्मों को परिवर्तित करने में  खर्च देता है, आध्यात्मिक चिकित्सक के किए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह अपने सत कर्मों की जमा राशि को निरंतर बढ़ाता जाए सेवा और दान- पूण्य के कार्यों द्वारा।  

 

पिछले लेख में  हमने  ज्वर को कम करने की तकनीक सीखी थी।  इस लेख में हम किसी चोट या घाव को ठीक करने में की जाने वाली तत्कालीन विधि के बारे में जानेंगे।

 

एक अतीन्द्रियदर्शी को, वह कोशिकाएं जो ऊतक और चर्म के पुनर्जनन में कार्यशील होती  हैं , वे पीले रंग के शेड्स में दिखाई देती हैं

 

प्रारंभिक प्रबंध

जैसा की पिछले लेख में बताया गया था आध्यात्मिक चिकित्सा प्रारम्भ करने से पूर्व अपने साथ एक कटोरे में पानी और समुद्री नमक रखें। इसे एक कचरापात्र की तरह समझें जिसमें आप भारी प्राण को अपनी चेतना की सहायता से डालेंगे जैसे कि एक कपड़े पर से आप धूल हटा रहे हों।  इस विधि में कुछ पीले फूल व नीम के पत्ते भी प्रयोग में आते हैं।  

 

विधि

१. अपना ध्यान अनाहद चक्र पर ले जाकर अपने गुरु से कनेक्ट करें

२. नीम के पत्तों को दोनों हाथों में लेकर पूरे शरीर को, ऊपर से नीचे तक,   ५० बार स्वीप करें।  

३. नीम के पत्तों को अपने दाएं हाथ में लें और चोट / घाव की जगह को क्लीन करें घड़ी की सुईं की विपरीत दिशा में , हाथों का सर्कुलर दिशा में घूमते हुए।  आपकी चेतना इस समय विशुद्धि चक्र पर होनी चाहिए जो आपके कंठ में स्थित होता है।  

४ इसके बाद पीले फूलों से चोट / घाव को १५ मिनेट तक श्वेत पीली रौशनी से  एनेर्जाइज़करें। एनेर्जाइज़  करते समय आपका हाथ घडी की सुईं की दिशा में घूमता है।  इस समय भी आपकी चेतना विशुद्धि चक्र पर ही रहे।

५. अब अपनी हथेलियों से ठंडी अनुभूति श्वेत नीले रंग के रूप में चोट / घाव की जगह पर डालें ।

 

अपना अनुभव मुझे लिखें ।

 

टिपण्णी : आध्यात्मिक चिकित्सा करते समय सदैव अनासक्ति का भाव रखें , आप केवल एक माध्यम है चिकित्सा को करने वाली एक सूक्ष्म शक्ति है।  

 

इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आध्यात्मिक चिकित्सा के इस विज्ञान का अभ्यास हमेशा व्यावसायिकता से दूर रखें , केवल तभी आपको इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।  

 

योगी अश्विनी ध्यान फाउंडेशन मार्गदर्शक तथा वैदिक विज्ञान के  विशेषज्ञ हैं । ' सनातन क्रिया – डी एसेंस ऑफ़ योग' में उन्होंने आज के मानव के लिए अष्टांग योग के विज्ञान का सम्पूर्णता से उल्लेख किया है । अधिक जानकारी के लिए www.dhyanfoundation.com या  dhyan@dhyanfoundation.com पर संपर्क करें

 

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