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11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष

11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष
हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद

शिक्षाविद राज किशोर कालड़ा
अध्यक्ष सोशल वैल्फेयर सोसायटी बस्ती हजूर ङ्क्षसह फाजिल्का।

Raj Kishor Kalra Ji

मौलाना अबुल कलाम आजाद, जिन्हें सम्मानपूर्वक मौलाना आजाद कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। साथ ही वह एक प्रसिद्ध विद्धान तथा कवि भी थे। उन्हें अरबी, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी, फारसी तथा बंगाली इत्यादि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।
मौलाना आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का में हुआ था। उनके पूर्वज हेरात (अफगानिस्तान का एक शहर) से सबंधित थे। उनकी पारिवारिक पृष्ठ भूमि कट्टर धाॢमक विचारों वाली थी। इस लिए उन्हें परम्परागत इस्लामिक शिक्षा ही मिली। उन्हें घर पर ही पहले उनके पिता द्वारा तथा बाद में अपने अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञ अध्यापकों द्वारा पढ़ाया गया। मौलाना आजाद ने पहले अरबी और फारसी तथा फिर दर्शन शास्त्र, गणित, अंग्रेजी, विश्व इतिहास तथा राजनीति का अध्ययन किया।
उन पर सर सैयद अहमद खान का काफी प्रभाव रहा। उन्होंने अफगानिस्तान, ईराक, मिसन, सीरिया तथा तुर्की की यात्राएं भी की जहां वह कई क्रांतिकारियों तथा राष्ट्रवादियों से मिले। विदेश से वापस लौटने के बाद मौलाना आजाद की मुलाकात बंगाल के दो प्रमुख क्रांतिकारियों अरबिदो घोष तथा श्याम सुंदर चक्रवर्ती से हुई और वह ब्रिटिश राज के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए। मौलाना आजाद ने देखा कि क्रांतिकारी गतिविधियां सिर्फ बंगाल तथा बिहार तक ही सीमित थीं। दो वर्ष के भीतर ही मौलाना आजाद ने पूरे उत्तरी भारत तथा बाम्बे में कई क्रांतिकारी केंद्रों की स्थापना में सहायता की।
सन 1912 में मौलाना आजाद ने उर्दू में एक पत्रिका की शुरूआत की। इस पत्रिका ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में काफी योगदान दिया। सरकार ने सन 1914 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया। मौलाना आजाद ने एक अन्य साप्ताहिक पत्रिका शुरू की जो भारतीय राष्ट्रवाद तथा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करती थी। यह भी हिंदू-मुस्लिक एकता पर जोर देती थी। 1916 में सरकार ने इस पत्रिका को भी प्रतिबंधित कर दिया और मौलाना आजाद को रांची में नजरबंद कर दिया। वहां से उन्हें सन 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा किया गया।
रिहा होने के बाद मौलाना आजाद ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का बीड़ा उठाया। खिलाफत आंदोलन का उद्देश्य खलीफा को पुन: पहचान दिलाना था जिन्हें ब्रिटिश लोगों ने सत्ता से हटाकर तुर्की को अपने अधीन कर लिया था। मौलाना आजाद ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असयोग आंदोलन का समर्थन किया ओर 1920 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें सन 1923 में कांग्रेस के दिल्ली विशेष सत्र का अध्यक्ष चुना गया। गांधी जी के नमक सत्याग्रह में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया। उन्हें मेरठ जेल में डेढ़ वर्ष तक कैद रखा गया। सन 1940 में मौलाना आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने ओर 1946 तक इस पद पर रहे। वह भारत विभाजन के अत्यधिक विरोधी थे लेकिन उनके तथा अन्य राष्ट्रवादी नेताओं के प्रयासों के बावजूद भी विभाजन हुआ। इससे उन्हें बहुत गहरा सदमा लगा।
मौलाना आजाद ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रीमंडल में 1947 से 1958 तक बतौर शिक्षा मंत्री अपनी सेवाएं दी थीं। 22 फरवरी 1958 को उनका निधन हो गया लेकिन भारतीय इतिहास में उनका नाम हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने वाले एक नेता तथा दर्शनिक के तौर पर हमेशां के लिए दर्ज हो गया।
आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर अध्यापकों को मेरी शुभ कामनाएं

 

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