शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो विजय गरग
जहॉ इंजिनीयरो और डॉक्टरो की संकर नस्ल पैदा की जाती है..कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजिनीयर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है..अब नेचुरल देसी नस्ल छोटी रह जाती है तो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक नही रहती..
अब आपको बिस साल पहले ले जाते है जब सरकारी स्कुलो का दौर था..जब एक औसत लड़के को साइंस ना देकर स्कुल वाले खुद ही लड़के को भट्टी में झोकने से रोक देते थे..आर्ट्स और कामर्स देकर लड़को को शिक्षक बाबु..पटवारी..नेता और बनीया बनाने की तरफ मोड़ देते थे…मतलब की पानी को छोटी-छोटी नहरो में छोड़ कर योज्ञता के हिसाब से अलग अलग दिशाओ में मोड़ देते थे ताकी बाढ़ का खतरा पैदा ना हो….
शिक्षक लड़के के गलती करने पर उसको डंडे से पिट पिट कर साक्षर करने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबुत कर देते थे…पापा मम्मी से शिकायत करो तो दो झापड़ पापा मम्मी भी जड़ देते थे और गुरुजी से सुबह स्कुल आकर ये और कह जाते थे की अगर नही पढ़े तो दो डंडे हमारी तरफ से लगाना…अब पक्ष और विपक्ष एक होता देख … लड़का पिटने के बाद सिधा फील्ड में जाकर खेलकुद करके अपना तनाव कम कर लेता था…खेलते समय गिरता पड़ता और कभी कभी छोटी मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता…पर कभी तनाव में नही आता…..दसवीं आते आते लड़का लोहा बन जाता था..तनावमुक्त होकर मैदान में तैयार खड़ा हो जाता था..हर तरह के तनाव को झेलने में…
फीर आया कोचिंग और प्राईवेट स्कुलो का दौर यानी की शिक्षा स्कुल से निकल कर ब्रांडेड शोरुम मे आ गई..शिक्षा सोफेस्टीकेटेड हो गई….बच्चे को गुलाब के फुल की तरह ट्रीट कीया जाने लगा…मतलब बच्चा 50% लाऐगा तो भी साइंस में ही पढ़ेगा…हमारा मुन्ना डॉक्टर बनेगा..हमारा बच्चा IIT से B.tech करेगा….शिक्षक अगर हल्के से मार भी दे तो पापा मम्मी मानवाधिकार की किताब लेकर मिडीया वालो के साथ स्कुल पर चढ़ाई कर देते थे की हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया…मीडीया वाले शिक्षक के गले मे माईक गुसेड़ कर पुछने लग जाते की आप ऐसा नही कर सकते….यहॉ से आपका बच्चा सॉफ्ट टॉय बन गया..बिलकुल टेडी बियर की तरह….अब बच्चा स्कुल के बाद तिन चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया….खेलकुद भुल गया..फलाने सर से छुटा तो ठिमके सर की क्लास में पहुंच गया…बचपन किताबो में उलझ गया और बच्चा कंपीटीशन के चक्रव्युह में उलझ गया…
क्यो भाई आपका मुन्ना केवल डॉक्टर और इंजीनीयर ही क्यो बनेगा…वो आर्टीस्ट..सिंगर…खिलाड़ी..किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारखाने का मालिक क्यो नही बनेगा..हजारो फिल्ड है काम के योज्ञता के हिसाब से चुनो…अभी कुछ दिनो पहले मेरे महंगे जुते थोड़े से फट गऐ पता कीया एक लड़का अच्छी तरह से रिपेयर करता है की पता ही नही चलता की रिपेयर कीये है..उसके पास गया तो 300 रुपये मांगे रिपेयर करने के और पॉच दिन बाद मिलेगें..उस लड़के की आमदनी का हिसाब लगाया तो पता चला की लगभग एक लाख रुपये महीने कमाता है..यानी की पुरा बारह लाख का पेकेज…वो कोटा नही गया..उसने अपनी योज्ञता को हुनर में बदल दिया और अपने काम में मास्टर पिस बन गया….कोई शेफ बन कर लाखो के पेकेज मे फाईफ स्टार होटलो मे नौकरी कर रहा है तो कोई हलवाई बन कर बड़े बड़े इवेंट में खाना बना कर लाखो रुपये ले रहा है…कोई डेयरी फार्म खोल कर लाखो कमा रहा है..कोई दुकान लगा कर लाखो कमा रहा है तो कोई कस्ट्रक्शन के बड़े बड़े ठेके ले रहा है..तो कोई फर्निचर बनाने के ठेके ले रहा है..कोई रेस्टोरेंट खोल कर कमा रहा है तो कोई भंगार का माल खरीद कर लाखो कमा रहा है…तो कोई सब्जी बेच कर भी 20-25 हजार महीने का कमा रहा है तो कोई चाय की थड़ी लगा कर 40-50 हजार महीने के कमा रहा है तो कोई कचोरी समोसे बेच कर लाखो रुपये महीने के कमा रहा है..कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योज्ञता और इन्ट्रेस्ट को हुनर में बदला और उस हुनर में मास्टर पीस बना……जरुरी नही है की आप डॉक्टर और इंजिनीयर ही बने आप कुछ भी बन सकते है….
हॉ तो अभीभावको बच्चो को टेडी बियर नही लोहा बनाओ…अपनी मर्जी की भट्टी मे मत झोको…उसे पानी की तरह नियंत्रीत करके छोड़ो वो अपना रास्ता खुद बनाने लग जाऐगा…..पर बच्चो पर नियंत्रण जरुर रखो ….अगर अनियंत्रीत हुआ तो पानी की तरह आपके जिवन में बाढ़ ला देगा…….
कहने का मतलब ये है की शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो..क्यो सिंथेटीक बना रहे हो