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शांति विद्या मंदिर के छात्रों वंश शर्मा एवं भाविका ने श्री कृष्ण एवं रुक्मणी की भूमिका निभाई

श्रीमद् भागवत कथा में रुकमणी मंगल पांच कलेश  और जीवन साधना का वर्णन

शांति विद्या मंदिर के छात्रों वंश शर्मा एवं भाविका ने श्री कृष्ण एवं रुक्मणी की भूमिका निभाई

श्रीमद् भागवत कथा में रुकमणी मंगल पांच कलेश  और जीवन साधना का वर्णन

शांति विद्या मंदिर के छात्रों वंश शर्मा एवं भाविका ने श्री कृष्ण एवं रुक्मणी की भूमिका निभाई

फिरोजपुर , 17.9.2022: फिरोजपुर छावनी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में स्वामी आत्मानंद पुरी जी ने कहा कि आत्मा से परमात्मा का मिलन ही रुकमणी मंगल है। इस अवसर पर शांति विद्या मंदिर के

छात्रों वंश शर्मा एवं भाविका ने श्री कृष्ण एवं रुक्मणी की भूमिका निभाई। स्वामी जी ने कहां की मनुष्य को यह समझ लेना चाहिए कि इस संसार में उसका हित करने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं है। इसलिए उसकी शरण में जाकर अपने मन को निर्मल बनाने में लग जाओ। उन्होंने कहा जिसे लगता है कि मैंने सब कुछ पा लियाए यह उसका गलत विश्वास है। अपने आप को पंडितए ज्ञानी मानने की बुद्धि मनुष्य का नाश करती है। जिससे मन में क्लेश उत्पन्न होते हैं।

उन्होंने बताया कि क्लेश पांच प्रकार के होते हैं। संसार के सभी दुखों का कारण यह पंच क्लेश ही हैं ।यह है . अविद्या ए अस्मिताए राग ए द्वेष और अभिनिवेश। इनमें से अविद्या इन क्लेशों की जननी है। अविद्या के कारण ज्ञान ना हो पाने की स्थिति को अस्मिता कहते हैं। सुख के साधनों में इच्छा व तृष्णा होना ही राग नामक कलेश है। सुकून के साधनों में विघ्न डालने वाली वस्तुओं से द्वेष उत्पन्न होने लगता। दुख देने वाले साधनों के प्रति घृणा भाव उत्पन्न होता है। मृत्यु का भय अभिनिवेश है। जो व्यक्ति ज्ञान द्वारा आत्मा का स्वरूप पहचान लेता है एवह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।आत्मा पर शरीर का आवरण चढ़ जाने से जीव स्वयं को शरीर मात्र मान बैठता है साधक को चाहिए कि पहले भगवान की निष्काम भक्ति करके भगवान का दास बने और अपने अंतःकरण की शुद्धि में वैसे ही लग जाए जैसे किसान बीज बोने से पहले खेतों में तैयारी करता है।

अंतःकरण शुद्ध होने से सब कुछ उसी प्रकार स्वच्छ दिखाई देगा जैसे साफ शीशे में प्रतिबिंब दिखाई देता है। अंतिम ध्यान रखने योग्य बात है .जीवन साधना आदर्श। इससे आप अपना अध्यात्मिक विकास कर सकेंगे।इसके लिए मनन के अनुसार जीवन को ढालना चाहिए। इसके बिना जीवन का सच्चा आनंद नहीं मिल सकता।

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