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पीठ एवं रीढ़ के आसन- भाग २ : योगी अश्विनी

पीठ एवं रीढ़ के आसन- भाग २

योगी अश्विनी

Yogi Ashwinin Ji

पिछले सप्ताह हमने लम्बे समय तक शरीर की युवावस्था और उर्जा बनाए रखने में एक दृढ़ रीढ़ के महत्त्व  पर चर्चा की थी।  इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए  इस लेख  मे रीढ़ के सूक्ष्म पहलु को समझते हैं ।

व्यायाम केवल स्थूल शरीर के लिए होता है अपितु योग आपके सम्पूर्ण शरीर से सम्बन्ध  रखता हैं अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय  और आनन्दमय कोश। आप जैसे जैसे सनातन क्रिया का अभ्यास करेंगे, आपके शरीर की ये सूक्ष्म परतें  स्वतः आपके समक्ष प्रत्यक्ष  होती जाएँगी।  स्थूल शरीर से सटि हुई परत  प्राणमय है, जहाँ ना‌‌‌‌‌ड़ियों और चक्रों में  प्राणों  (सृष्टि की शक्ति) का संचालन होता  हैं। इस संचालन में सुषुम्ना नाड़ी का विशेष महत्व है। इस नाड़ी पर शरीर के प्रमुख चक्र स्थित होते है और इसके माध्यम से ही  प्राण मूल चक्र से उच्चतम केंद्रों में प्रवाहित होते हैं। ध्यान आश्रम के क्लैरवॉयन्ट इसे शरीर के मध्य में एक  श्वेत रंग की  प्रज्वलित नली  की तरह देख सकते है। इस नाड़ी में किसी भी प्रकार का  अवरोध, प्राणों के प्रवाह में बाधा डालता है और बिमारियों एवं वृद्धता का कारण बनता है।

 

रीढ़ स्थूल शरीर में सुषुम्ना का प्रतिबिम्ब  है और रीढ़ में किसी  भी प्रकार की  विषमता सुषुम्ना में  प्राणों केप्रवाह मेंअवरोध उत्पन्न करतीहै।

 

अतः रीढ़ को सशक्त करने की इस  शृंखला में आगे बढ़ते हुए अपनी पीठ के बल सीधा लेट जाएँ, एड़ियाँ जोड़े रखें। आँखें बंद रखते हुए, अपना सारा ध्यान पीठ पर केंद्रित करें।

ज्येष्टिका  आसन: गर्दन के पीछे दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में मिला लें।  कोहनियाँ  ज़मीन पर ही रहेंगी।  अब श्वास अंदर लेते हुए  अपनी कोहनियों को ज़मीन पर बाहर की ओर  फैलाइए जिससे आप की पीठ का ऊपरी भाग और कंधे समतल हो जाएँ। इस अवस्था में सात गिनने तक रहे फिर श्वास छोड़ते हुए पुनः विश्राम अवस्था में आ जाएं।  इस क्रिया को सात बार दोहराएं ।

मकर  आसन : अपनी हथेलियों से अपनी ठोड़ी/मुंह को सहारा देते हुए अपने धड़ को उठाइए, कोहनिया ज़मीन पर ही रहेंगी। जिन्हें पीठ की गम्भीर समस्या है वे अपनी कोहनियों को अलग  अथवा दूर-दूर रख सकते है और जैसे-जैसे पीठ की शक्ति में वृद्धि होती है, कोहनियों को आपस में जोड़ने का प्रयास रखें । श्वास अंदर लें और इस अवस्था में सात गिनने तक रहें फिर श्वास छोड़ते हुए पुनः विश्राम अवस्था में आ जाएँ।  इस क्रिया को सात बार दोहराए।

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