धूमी जी महाराज की 76वी पुण्यतिथि के उपलक्ष में श्रीमद् भागवत कथा का आज दूसरे दिन कुलभूषण गर्ग ने बताया कि परमात्मा कहते हैं…..
धूमी जी महाराज की 76वी पुण्यतिथि के उपलक्ष में श्रीमद् भागवत कथा का आज दूसरे दिन कुलभूषण गर्ग ने बताया कि परमात्मा कहते हैं…..
16.2.2023: ( परमात्मा के 24 अवतार, जिनमें से राम और कृष्ण पूर्ण पुरुषोतम अवतार बाकी के सब अंशावतार, राजा परीक्षित को माता उत्तरा के पेट में ही परमात्मा के दर्शन।)
धूमी जी महाराज की 76वी पुण्यतिथि के उपलक्ष में श्रीमद् भागवत कथा का आज दूसरे दिन कुलभूषण गर्ग ने बताया कि परमात्मा कहते हैं की तू मेरा जीव (अंश) है, तू मुझ में मिलकर कृतार्थ होगा! नर नारायण का अंश है, अंश (नर)और अंशी (नारायण) में जब तक ना मिल जाए तब तक उसे शांति नहीं मिलेगी।
परमात्मा के 24 अवतारों की कथा है, धर्म की स्थापना करने और जीव का उद्धार करने को परमात्मा अवतार धारण करते हैं, श्री राम और श्री कृष्ण यह दोनों अवतार साक्षात पूर्ण पुरुषोत्तम के अवतार हैं बाकी के सब अंशावतार हैं।
शुद्ध ब्रह्मा माया के संसर्ग बिना अवतार नहीं ले सके। सौ टंच का सोना नरम होता है उससे जेवर की घड़ाई (बनावट) नहीं हो सकती, हार बनाने वास्ते दूसरी धातु मिलानी पड़ती है। इसलिए परमात्मा भी माया का आश्रय लेकर प्रकट होते हैं परंतु ईश्वर को यह माया बाधक नहीं होती।
राजा परीक्षित को माता के पेट में ही परमात्मा के दर्शन हुए थे,जब उत्तरा के पेट में गर्भ था तो उसका नाश करने हेतु अश्वधामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा तो उत्तरा व्याकुल गई,ब्रह्मास्त्र उत्तरा के शरीर को जलाने लगा उत्तरा दौड़ती- दौड़ती श्री कृष्ण जी के पास आई, श्री कृष्ण जी ने उत्तरा के गर्भ में जाकर परीक्षित का रक्षण किया। जीव मात्र परीक्षित ही है। सबकी गर्भ में कौन रक्षा करता है ? अपने दुख की कथा द्वारिकानाथ के सिवा किसी से कभी मत कहो। माता के पेट में ही परीक्षित को परमात्मा के दर्शन हुए थे। परमात्मा की लीला अप्रकृतिक है। उत्तरा ने बालक को जन्म दिया, वह चारों ओर देखने लगा माता के उदर (पेट) में मुझे चतुर्भुज स्वरूप जो दिखता था वह कहां है, परीक्षित भाग्यशाली था कि उसको माता के गर्भ में ही भगवान के दर्शन हुए, यही कारण है कि वह उत्तम श्रोता है। भगवान कृष्ण के स्वधामगमन और यदुवंश के विनाश का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने स्वर्गारोहण का निश्चय किया।परीक्षित को राजसिंहासन दे दिया। राजा परीक्षित ने धर्म से प्रजा पालन किया, एक दिन परीक्षित राजा को जिज्ञासा हुई कि देखो तो सही मेरे दादा ने मेरे लिए घर में क्या- क्या छोड़ रखा हैं, एक पेटी में से स्वर्ण मुकुट मिला, बिना कुछ सोचे समझे ही राजा ने मुकुट पहन लिया, यह मुकुट तो जरा संघ का था और यह मुकुट अधर्म से लाया गया था, इसलिए उसके द्वारा कलि ने राजा परीक्षित की बुद्धि में प्रवेश किया। इस मुकुट को पहन कर राजा परीक्षित वन में शिकार करने गए और उन्हें भूख और प्यास सताने लगी। उन्होंने शमीक ऋषि के आश्रम में प्रवेश किया, परीक्षित ने सोचा कि इस देश का राजा मैं हूं और ऋषि ने मेरा स्वागत क्यों नहीं किया? और उन्होंने एक मरा हुआ सांप शमीक ऋषि के गले में पहना दिया, जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता लगा तो वह क्रोध से भड़क उठा और श्रृंगी ने राजा को श्राप दिया कि तूने तो मेरे पिता के गले में मरा हुआ सांप पहना दिया, किंतु आज से सातवें दिन तुझे तक्षक नाग डसेगा। राजा परीक्षित ने अपने सिर से जब मुकुट उतारा तो तुरंत ही उसे अपनी भयंकर भूल का भान हुआ। मैंने मति भ्रष्ट होकर ऋषि का अपमान किया।राजा परीक्षित ने गृह त्याग किया और वे गंगा तट पर आए। परीक्षित ने भगवान की स्तुति की और कहा कि हे द्वारिकानाथ मैं आपकी शरण में आया हूं आपने जब मेरा जन्म उजागर किया है तो मेरी मृत्यु को भी सुधारिए।
परमात्मा ने शुकदेव को प्रेरणा दी कि वहां जाओ। शिष्य सुयोग्य है। और भगवान शिव जी के अवतार शुकदेव जी वहां पधारे। परीक्षित ने शुकदेव जी के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और अपना पाप उन्हें कह सुनाया। मेरा उद्धार करो,आसन मरण को क्या करना चाहिए? गुरुदेव शुकदेव जी का हृदय पिघल गया, शिष्य सुयोग्य है।अधिकारी शिष्य मिलने पर गुरु का दिल कहता है कि उसे मैं अपना सर्वस्व दे दूं। शुकदेव जी कहते हैं, हे राजन तू घबराता क्यों हैं अभी तो 7 दिन बाकी हैं। हे राजन जो समय बीत गया उसका स्मरण मत करो, भविष्य का भी विचार मत करो, केवल वर्तमान को सुधारो। मेरे नारायण का स्मरण करो, तुम्हारा जीवन अवश्य उजागर होगा। भागवत का वक्ता शुकदेव जी जैसा होना चाहिए। आज कथा का पूजन प्रमोद अग्रवाल और पालचंद सिंगला ने करवाया।
जय श्री राम।