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गयाहरवी की छात्रा ने बताया बायोडिग्रिडेबल डॉयपर, देश को पर्यावरण प्रदूषण से बचाना मुख्य लक्ष्य
छात्रा का वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्ड हेतू नामित्त, हर तरफ हो रही सराहना-
गयाहरवी की छात्रा ने बताया बायोडिग्रिडेबल डॉयपर, देश को पर्यावरण प्रदूषण से बचाना मुख्य लक्ष्य
-बोली: बहन का डॉयपर कूड़ेदान में फैंकने लगी तो आया आइडिया, कपड़े और रूई के मिश्रण से बनाया डॉयपर-
-छात्रा का वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्ड हेतू नामित्त, हर तरफ हो रही सराहना-
फिरोजपुर, 20 जुलाई, 2023
डीसीएम इंटरनैशनल स्कूल की छात्रा ने बेबी डॉयपर पर स्टड़ी करके पर्यावरण हित में डॉयपर बनाया है, जिससे ना तो हानिकारक गैसे पैदा होगी और वह पर्यावरण में बॉयोडिग्रिडेबल होगा। 11वीं छात्रा की 16 वर्षीय अनुरीत कौर की इस खोज के चलते उसका नाम वल्र्ड बुक ऑफ रिकार्ड हेतू नामित हुआ है। छात्रा की इस उपलब्धि पर स्कूल प्रिंसिपल सोमेश चन्द्र मिश्रा सहित अध्यापको ने खुशी जाहिर करते हुए बधाई दी है। इससे पहले अनुरीत कौर मुम्बई के साइंस इंटरर्नशिप प्रोग्राम का हिस्सा बन चुकी है और वहां पर 50 हजार रूपए स्कॉलरशिप के रूप में हासिल कर चुकी है।
अनुरीत कौर ने बताया कि एक बार अपनी बहन का डॉयपर उताकर जब वह कूड़ेदान में फैंकने लगी तो उसके मन में विचार आया कि आखिर इतने सारे डॉयपर और सैनेटरी पैड नगर कौंसिल द्वारा किधर खपाए जाते होंगे। पूरी रात उसके मन में यही विचार चलता रहा तो उसने अगले दिन साइंस विभाग के एचओडी गौरव कालिया से आइडिया शेयर किया।
वह अपने मैंटर गौरव कालिया के साथ नगर कौंसिल गए और वहां उसने पता किया सैनेटरी विंग द्वारा कूड़े में आए डॉयपर और सैनेटरी पैड्स का क्या किया जाता है? उन्हें जवाब मिला कि यह मिट्टी में मिलकर खाद नहीं बनते तो इन्हें इकट्टा करके दबा दिया जाता है। अगर उन्हें जलाया जाए तो आम प्लास्टिक से तीन गुणा ज्यादा जहरीली गैसे पैदा होती है जोकि सबसे ज्यादा वातावरण प्रदूषण करती है।
उन्होंने सोचा कि क्यों ना ऐसा डॉयपर तैयार किया जाए, जोकि पर्यावरण संरक्षण में सहायक हो। उसने अन्य कम्पिनयो के डॉयपर में इस्तेमाल होन वाले मैटीरियल का पता लगाया तो उन्हें पता चला कि डॉयपर में सॉली अथांटिक पॉलिमर -सैप- होता है जोकि हयूमन वेस्ट को 12 से 24 घंटे तक सोखने में सहायक होता है, लेकिन यह मिट्टी में मिलकर खाद्य नहीं बनता और इसे जलाने से वातावरण को प्रभावित करने वाली गैसे पैदा होती है।
उसके बाद वह सिविल अस्पताल में गए और वहां डॉक्टर्स से भी बातचीत की। फिर उन्होंने मुम्बई की एक कंपनी से बात कि और पता लगाया कि एक कपड़ा भी ऐसा आता है जो कि हयूमन वैस्ट को 10 घंटे तक सोखने की क्षमता रखता है। उन्होंने कंपनी से वह कपड़ा मंगलवाया तथा डॉयपर बनाने से पहले चाइल्ड स्पैशलिस्ट डॉक्टर से सलाह ली और डॉक्टर ने उन्हें कपड़े के साथ स्पैशल कॉटन लगाने की सलाह दी।
उसके बाद उन्होंने एक ऐसा डॉयपर तैयार किया जोकि बिना सॉली अथांटिक पॉलिमर -सैप- के था और उसमें मुम्बई की कंपनी के कपड़े और कॉटन अर्थात रूई का मिश्रण था।
अनुरीत ने बताया कि पूरा प्रोजैक्ट तैयार करने में उन्हें करीब 19 दिन लगे है और एक डॉयपर उसे करीब 17 रूपए का पड़ा है। अभी उसने मात्र 3 ही डॉयपर बनाए है। उसने कहा कि अगर लोग इसी डॉयपर का इस्तेमाल करे तो पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाया जा सकता है।
अनुरीत कौर ने कहा कि जब वह इस पर रिसर्च कर रही थी तो उसे पता चला कि रोजाना देश में 1 लाख से ज्यादा नए डॉयपर बनते है और बड़ी संख्या में इसका इस्तेमाल किया जाता है और इसके बॉयोडिग्रेडबल ना होने के कारण धरती पर गंदगी फैल रही है।