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गंदगी की घृणित असभ्यता से बचें, स्वच्छता मनुष्य का गौरव है: कालड़ा

स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए प्रयास निरंतर जारी रखे जाएं
गंदगी की घृणित असभ्यता से बचें, स्वच्छता मनुष्य का गौरव है: कालड़ा

फाजिल्का, 6 नवंबर: 2 अक्तूबर 2014 को गांधी जयंति पर चलाए स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए देश के सभी नागरिकों को प्रयास जारी रखने होंगे क्योंकि स्वच्छता मनुष्य का गौरव है। इन विचारों का प्रगटावा सोशल वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष व शिक्षा शास्त्री राज किशोर कालड़ा ने जारी एक व्यक्तव्य में किया। उन्होंने कहा कि 2 अक्तूबर 2014 में गांधी जयंति पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत को उल्लास-उत्साहपूर्वक प्रारंभ किया था। सभी लोगों ने इस दिशा में बहुत उत्साह दिखाया भी है लेकिन यह उत्साह कुछ समय में ढीला न पडऩे लगे इस पर ध्यान देना चाहिए। सोसायटी के अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2019 की गांधी जयंति तक बापू को ‘स्वच्छ भारत’ का उपहार भेंट करने का लक्ष्य रखा गया है। लक्ष्य प्राप्ति तक हमारा उत्साह घटे नहीं सक्रियता बढ़े और कौशल निखरता रहे, तो बात बने। इस अभियान के अंतर्गत बीते एक वर्ष में अब तक विभिन्न सरकारी, अद्र्ध सरकारी, सामाजिक, व्यापारिक, धार्मिक व राजनीतिक संगठनों द्वारा भारत को स्वच्छ बनाने के लिए अनेकों अभियान चलाए गए। श्री कालड़ा ने कहा कि ऐसे अभियानों को निरंतर जारी रखने से ही प्रधानमंत्री व हम सबका स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकेगा। उन्होंने कहा कि भारत एक महान देश है। हजारों साल तक इसे विश्व गुरु, विश्व के मुकुटमनि होने का गौरव मिला है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति मानी जाती है, लेकिन स्वच्छता के स्तर तक जब परखा जाता है तो हमारा सिर शर्म से झुकने लगता है। स्वच्छ राष्ट्रों की सूचि में भारत को नीचे से दूसरा स्थान प्राप्त है। इसका अर्थ यह होता है कि इसे भारतवासियों की रहन सहन की दृष्टि से गंदे व्यक्तियों में स्थान दिया जाता है। देश की महानता पर लगे इस कलंक से हमें जितना जल्दी हो सके धो ही देना चाहिए। समाजसेवी ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि जो कर्मचारी अपने शौचालय को स्वंय साफ नहीं करते वह अपने दफ्तर की सफाई भी नहीं रख सकते। स्वच्छता के अभियान की सफलता के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को हर संभव प्रयास करना होगा। स्वच्छता स्वास्थ्य का आधार है। आरोग्य के लिए गंदगी को समाप्त करना होगा। मानसिक स्वच्छता का प्रमाण उसका आचरण है, इसलिए स्वच्छता एक साधना है। मनोवृति का परीष्कार है। जो उसे प्राप्त करेगा वह सुखी रहेगा। अपने जीवन को सार्थिक बनाने के लिए इसका पालन करना पर्म आवश्यक है।
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