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अनैतिक प्रदूषण का असली अपराधी – विजय गर्ग

पर्यावरण के प्रदूषण का कारण प्लास्टिक का अस्तित्व है। अधिकांश प्लास्टिक जला नहीं करता है। यह तरल के रूप में मिट्टी में जाता है और फिर पानी में विलीन होता है। जिसके कारण पानी प्रदूषित होता है। उस प्रदूषित मिट्टी में उगाई गई फसल हमारे पेट में जाकर कई रोगों को जन्म देती है। रंगीन टीवी, माइक्रोवेव, फैक्स मशीन, फोन, एयर कंडीशनर, आदि को जोड़ भी दिया जाए तो ज्यादा मात्रा में पुराने या खराब होने की वजह से कबाड़ में फेंक दिया जाता है। इन उपकरणों में ऐसे रसायन होते हैं जो हवा, मिट्टी, पानी, मानव और पर्यावरण को इस तरह से नुकसान पहुंचाते हैं कि इनसे बचना मुश्किल है।

   ऐसे नए उपकरणों की खरीद के दौरान, बहुत सा थर्मोकोल और प्लास्टिक पैकिंग या संरक्षण के नाम पर डाला जाता है। जो उपभोक्ता द्वारा कचरे में डाल दिया जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि कंपनी को उस व्यक्ति से पैकिंग सामग्री वापस लेनी चाहिए। 

    इन दिनों ई-रिक्शा को पर्यावरण मित्र बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह ई-रिक्शा विदेशों से लाने और इसे बेचने में शक्तिशाली नेताओं का एक बड़ा हाथ है। यह नहीं कहा गया है कि ई-रिक्शा की बैटरी जमीन बंजर पैदा कर रही है। हर साल एक बैटरी 2 लीटर तेजाबी पानी जमीन में या नालियों से होकर नहरों में जा रही है। इससे हमारे ग्रह को पृथ्वीहीन और नहरें दूषित हो रही हैं। ई-रिक्शा बैटरी बेचकर अपनी कमाई करके वातावरण के साथ दोस्ती का कर्तव्य नहीं निभा रहे। बड़ी कंपनियां अपने वाहनों को एक कठोर फैशन में बेच रही हैं लेकिन यह सोचा नही कि उनके वाहनों के इंजन से आने वाला धुआं पर्यावरण को दूषित कर रहा है। हर साल लाखों वाहनों के खराब टायरों के समाधान के लिए कंपनियां कोई हल नहीं नही खोज पाई।

इस तथ्य से कोई छिपा नहीं है कि सरकार पर्यावरण की रक्षा के लिए लोगों से टैक्स वसूल कर अपने खजाने को भर रही है। लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इन उपकरणों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से योगदान देने में समक्ष रहें।

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