दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से फिरोजपुर शहर में एक दिवसीय कार्यक्रम
Ferozepur, August 19, 2018: दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से फिरोजपुर शहर में एक दिवसीय कार्यक्रम हुआ। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री सोनिया भारती जी बताया कि वर्तमान समय में जब खाद्य संकट, ऊर्जा संकट ,पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर चुनौतियां मुंह खोले खड़ी हैं, विश्व का तेजी से बढ़ता हुआ सैन्य व शस्त्र निवेश न केवल बुनियादी आवश्यकताओं, वास्तविक प्राथमिकताओं से संसाधन खींच रहा है बल्कि हिंसा व युद्ध की विभीषिकाओं को अधिक विध्वंसक रूप दे रहा है ।युद्ध की त्रासदी यह है कि वह मानव के पास जो कुछ सर्वश्रेष्ठ है उसी को मानव का सर्वाधिक अहित करने में प्रयोग करता है। इन हालात में विश्व शांति के प्रयास भी जोर पकड़ रहे हैं। विश्व स्तर पर नि:शस्त्रीकरण के प्रयास ,धार्मिक सम्मेलनों का आयोजन ,राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न विश्व स्तरीय समझौते इत्यादि किए जा रहे हैं। यह सब प्रयास किसी वृक्ष के विकास के लिए, उसके पत्तों को सहलाने, टहनियों को पानी देने जैसा है, जहां जड़ को पोषित करने व सिंचित करने का कोई प्रयास नहीं है ।किसी समस्या के उन्मूलन के लिए उसके 'क्या, क्यों, कैसे' जानना अतिआवश्यक है।युद्ध की समस्या बाहरी प्रतीत होती है, पर उसकी जड़ मन में है।युद्धों के जाल पहले मानव मन में ईर्ष्या ,वैमनस्य, अहंकार, स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा जैसे तंतुओं से बुने जाते हैं और फिर यह बाहरी समाज को अपने शिकंजे में कस लेते हैं। इसलिए शांति के प्रयास भी सर्वप्रथम मानव मन में ही किए जाने चाहिए। शांति आत्मा की अद्भुत शक्ति से गड़ा हुआ मन का गहना है, जिससे समाज सुशोभित होता है। मन में शांति केवल ब्रह्म ज्ञान द्वारा ही संभव है अर्थात ईश्वर का साक्षात दर्शन। ब्रह्म ज्ञान के आलोक में अज्ञान तमस, भय व भेद दृष्टि का नाश होता है। साधक आत्मवत्, सर्वभूतेषु की भावना से परिपूरित हो समस्त विश्व को भौगोलिक सीमाओं से परे वसुधैव कुटुंबकम् जानता है।
भाईचारा, समानता, परस्पर प्रेम, परमार्थ के गुणों का विकास होता है। यही धर्म है। यही परम विज्ञान है, जो भौतिक विज्ञान की अनियंत्रित, विध्वंसात्मक शस्त्र शक्तियों को शास्त्र का आधार देता है और चिर परिकल्पित शांतिपूर्ण समाज की स्थापना कर सकता है। हमारे संत महापुरुषों का कथन है- 'बिन विज्ञान कि समता आरव' महान राजनीतिज्ञ अर्थशास्त्री तत्वज्ञानी विभूति कोटिल्य चाणक्य का भी यही कथन है- 'विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तंते' अर्थात् ब्रह्म ज्ञान के प्रकाश से ही संसार से भय का लोप हो सकता है।